बातों के दौरान मैंने उनसे पूछा कि उन्हें वहां पहुँचने में देर हो जाने पर वह ज्यादा नाराज़ तो नहीं हो जायेगी.
उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी उन्हें पूरी तरह से भूल चुकी है और पिछले पांच सालों से उन्हें पहचान भी नहीं पा रही है.
मुझे बड़ा अचरज हुआ. मैंने उनसे पूछा – “फिर भी आप रोज़ वहां उसके साथ नाश्ता करने जाते हैं जबकि उसे आपके होने का कोई अहसास ही नहीं है!?”
वह मुस्कुराए और मेरे हाथ को थामकर मुझसे बोले:
“वह मुझे नहीं पहचानती पर मैं तो यह जानता हूँ न कि वह कौन है!”
इस प्रेरक प्रसंग के लिये धन्यवाद