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Old 01-05-2015, 02:19 AM   #1
soni pushpa
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Default //////इर्ष्या ///////

ये एक एइसा शब्द है जो मानव के खुद के जीवन को तो तहस नहस करता है ओरो के जीवन में भी खलबली मचाता है .
यदि आप किसी को सुख या ख़ुशी नहीं दे सकते तो कम से कम दूसरो के सुख और ख़ुशी देखकर जलिए मत यदि आपको खुश नहीं होना है न सही मत होइए खुश किन्तु किसी की खुशियों को आपनी इर्ष्या के कारण बर्बाद न करे .
अक्सर समाज में देखा जाता है की कोई आगे बढ़ रहा है .किसी की उन्नति हो रही है नाम हो रहा है तो अधिकांश लोग आपको एइसे देखने मिलेंगे जो पहले ये ही सोचेंगे की कैसे आगे बढ़ते लोगो की राह का रोड़ा बना जाय .उनको कैसे निचा दिखाए कैसे समाज में उनकी मजाक बने और कैसे उनकी खुशियाँ छीन जाय .
बहुत कम लोग एइसे होते हैं जो किसी को आगे बढ़ता देख किसी की उन्नति होते देख आनंद का अनुभव करते हैं या खुश होते हैं

आपको नहीं लगता की हमे हमारी इर्ष्या जलाती है? बाद में सामने वाले का नुक्सान होता है? क्यूंकि इर्ष्या करते वक़्त हमारे दिमाग के स्नायु सिकुड़ते हैं जिसका प्रभाव हमारे अंतर्मन पर पड़ता है और इसका प्रभाव हमारी दिनचर्या पर पड़ता है हम चिडचिडे हो जाते हैं और घर के लोगो के साथ हमारा व्यवहार गलत ढंग का हो जाता है तब घर का वातावरण कलह पूर्ण हो जाता है और हमारा स्वाभाव झगडालू हो जाता है और आप जानते ही हैं की झगडालू लोग किसी को अछे नहीं लगते ये तो सिर्फ एक नुकसान हुआ इसी तरह के कई नुकसान होते है किसी की इर्ष्या करने से ..
मेरा मानना है की यदि आप किसी की खुशियों से खुश होकर उसे और आगे बढ़ने का प्रोत्साहन देंगे तो इससे दो फायदे होंगे एक तो समाज में आपकी छाप अछि पड़ेगी . दूजे आपको एक अंदरूनी ख़ुशी का एहसास होगा और एक सकारात्मक उर्जा का विकास अपने आप आपके अन्दर होगा ..

इसे इंसानी defect कह लीजिये या कुछ और पर सच ये है की बहुत सारे दुखों का कारण हमारा अपना दुःख ना हो के दूसरे की ख़ुशी होती है . आप इससे ऊपर उठने की कोशिश करिए ,. आपको सिर्फ अपने आप को आगे बढ़ाते रहना है , और व्यर्थ की तुलना के पचड़े में नहीं पड़ना है तुलना नहीं करनी है.

आप इर्ष्या करने के बजाय सामने वाले इंसान के गुणों को अपनाएं और जीवन में उनसे कुछ सीखे और लाभ ले ताकि आपका जीवन भी खुशहाल हो . न की सिर्फ और सिर्फ जलन में आपकी पूरी जिंदगी एइसे ही व्यर्थ चली जाय .

जब जब आपके मन में किसी के लिए इर्ष्या का भाव जागृत हो तब तब आपने विचारों की दिशा को सकारात्मक सोच की और मोड़ दीजिये जब विचारो की दिशा ही बदल जाएगी तब अपने आप नकारात्मकता आपसे दूर होते जाएगी और जब मन में अछि बातें आती है तब हमें वो बातें सुकून ही देती है न की ग्लानी या जलन .
अफ़सोस की बात है आज के समाज की , कि लोग किसी के दुःख को देखकर तो बहुत दुखी होते हैं सहानुभूति जताते हैं किन्तु उससे कई गुना ज्यदा लोग किसी की उन्नति से किसी के गुणों से जलते हैं और दुखी होते हैं और पुरे प्रयास करते हैं की सामने वाले का बुरा हो
एइसे लोगो के लिए भगवान से एक ही प्रार्थना करना चाहूंगी की उन्हें सद बुध्धि दें .
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