Re: रामचर्चा :: प्रेमचंद
यह परस्ताव सुनकर लोग बहुत परसन्न हुए और बोले—महाराज! आपकी शरण में हम जिस सुख और चैन से रहे उनकी याद हमारे दिलों से कभी न मिटेगी। जी तो यही चाहता है कि आपका हाथ हमारे सिर पर हमेशा रहे। लेकिन अब आपकी यही इच्छा है कि आप परमात्मा की याद में जिन्दगी बसर करें तो हम लोग इस शुभ काम में बाधक न होंगे। आप खुशी से ईश्वर की उपासना करें। हम जिस तरह आपको अपना मालिक और संरक्षक समझते थे, उसी तरह रामचन्द्र को समझेंगे।
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