23-08-2014, 10:45 PM
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
भाग दो
धीर गंभीर स्वभाव वाले डॉ. चंचल कुमार दास बहुत दिनों से यहाँ रहते थे और नगर के सम्मानित साइकेट्रिस्ट थे. उन्होंने शशि से तन्मयतापूर्वक बातचीत की और इस सेशन के दौरान उसकी समस्या को समझने की कोशिश की. बातचीत का यह सिलसिला कोई एक सप्ताह तक चला होगा. डॉ दास सभी संभावित सूत्रों पर विचार कर रहे थे. प्रत्येक सेशन के बाद समस्या की पृष्ठभूमि स्पष्ट होती जा रही थी. डॉक्टर तथा क्लाइंट के बीच विश्वास बढ़ता जा रहा था. यही कारण था कि डॉक्टर अपनी सूचनाएं प्राप्त करने में सफल हो रहे थे.
ऐसी ही एक बैठक के दौरान डॉ दास ने शशि से पूछा, “बेटी, मुझे यह बताओ कि क्या तुम्हें दिन के समय यानी जागते हुये भी ऐसे खौफ़नाक विचार सताते हैं?”
“कतई नहीं ... डॉक्टर अंकल ... बल्कि मैं तो इस स्वप्न को कभी इतनी गंभीरतापूर्वक न लेती यदि यह मुझे बार बार न दिखाई देता.”
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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