Re: मेरी कहानियाँ!!!
एक अन्य बात की ओर भी इशारा किया गया था. वह यह कि शशि जी स्वस्थ तन मन की मालकिन हैं और युवती हैं. आत्मविश्वास भी रखती हैं. वह किसी भी आसन्न समस्या का या परिस्थिति का साना कर सकती हैं.किन्तु इस सब से अलग उस समाज का भी तो एक अंग हैं जिसमे वो रहती हैं. लोगों से मिलती-जुलती हैं. जिसके मूल्यों को वह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से स्वीकार करती हैं. ये वो संस्कार हैं जो जन्म से अब तक उनके चिंतन का विकास करते रहे हैं. हमारा समाज कई जगह दकियानूसी हो जाता है. यह इस बात को आश्चर्य और विलक्षणता से देखता है कि एक माँ अपने नन्हें बच्चे के साथ अकेली रहती है. ज़माना प्रश्न करता है- अकेले क्यों रहती है? क्या पत्नी में कोई दोष था? या पति ही बिगड़ा और बदचलन था?
क्या पत्नी का आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर होना ही ऐसे या इन जैसे ही अन्य प्रश्नों का मुंहतोड़ उत्तर देने के लिये काफी है? शशि आनंद भी काफी हद तक अपने समाज कि मान्यताओं में आस्था रखती हैं व उनको स्वीकार करती हैं. डॉक्टर दास का कहना था कि मिज़ शशि आनंद भी ऐसी ही समस्याओं से आक्रान्त हैं.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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