23-08-2014, 10:53 PM
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#68
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
अब तक की मुलाकातों का श्रीमती शशि आनंद के मन पर अपेक्षित प्रभाव पड़ा है. क्योंकि इन मुलाकातों में उन बातों पर विशेष ध्यान दिया गया था कि वे प्रश्नों का उत्तर देते समय अपने अवचेतन तथा अचेतन मन पर जोर दें. स्वतंत्र साहचर्य पद्धति द्वारा विचार बाहर लाये गये. अचेतन व अवचेतन मन की समस्या स्वतः लुप्त होती चली गयी. इन बैठकों का यह लाभ हुआ कि बार बार टटोले जाने से समस्याओं का अनोखापन समाप्त हो गया. मंद होते होते ये समस्याएं पूर्णतः समाप्त हो गयीं.
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उधर दूसरी ओर, सिद्धांत को ठोकर लगी. मिश्रा जी की बड़ी लड़की नेहा का विवाह उनकी ही बिरादरी के एक बड़े परिवार में हो गया था. लड़का कॉलेज में लेक्चरर था. वह सुंदर, पढ़ा लिखा व सरल स्वभाव का युवक था. और सिद्धांत जिसे नेहा का प्यार समझ रहा था वह उसका सहज स्नेह था. अपना बेटा न होने के कारण नेहा के माता-पिता भी उसे अपना बेटा ही मानते थे, इससे अधिक कुछ नहीं.
वक़्त के थपेड़ों की मार खा कर और सगे सम्बन्धियों द्वारा मध्यस्थता किये जाने के बाद सिद्धांत बमुश्किल अपनी पत्नी शशि के सामने आने की हिम्मत बटोर सका. शशि ने पहले तो उससे मिलने से ही इनकार कर दिया किन्तु आखिर में उसके सब्र का बाँध भी टूट गया. अपने-अपने मन की कह लेने के बाद दोनों की आँखें सजल हो गईं. एक बार फिर उसने सिद्धांत को अपना लिया- अपने होने वाले बच्चे के लिये, अपने लिये, अपने परिवार के लिये और अपने समाज के लिये.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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