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Old 05-02-2012, 09:25 PM   #8
Dr. Rakesh Srivastava
अति विशिष्ट कवि
 
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Default Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच


( 4 )

पार्क के भीतर घुसते ही महकते फूलों की ख़ुश्बू ने उनका स्वागत किया . वहां चारों ओर फूलों का साम्राज्य स्थापित था . एक छोटा सा साम्राज्य - - - जिसे अगर विस्तार के सम्पूर्ण अवसर मिल जायें तो वह पूरी दुनिया को खूबसूरत बना डालें .
मौसम भी मोहब्बत के लिए पूर्णतः अनुकूल व प्रेरक था . अचानक पायल का हाथ पकड़ कर चंचल ऐसे भागा , जैसे सुगंध का हाथ पकड़ कर पवन भागता है . वह भागता रहा - - - भागता ही रहा , तब तक , जब तक कि पायल थक कर चूर न हो गयी .
भागते - भागते - - - अचानक पायल एक गढ़ी - तराशी झाड़ी की ओट में धम्म से मखमली घास पर भरभरा कर बिखर गयी . वह काफी थक गयी थी . उसकी सांस फूलने लगी थी -- इस्नोफीलिया के मरीज की तरह . उसका वक्ष धौंकनी की भाँति उठ - बैठ रहा था . चंचल भी पायल के सामने बैठ गया . वह पीठ के बल लेटी हुई पायल की तरफ एक टक निहार रहा था . तभी उसके दिमाग में एक अजीब से विचार ने जन्म लिया . इस समय - - - हाँफ रही पायल का तेजी से उठता - बैठता वक्ष स्थल देख कर उसे ऐसा लग रहा था , जैसे दो नन्हें मासूम स्कूली बच्चों को उनकी अध्यापिका ने किसी शरारत पर सजा दी हो - - - और वो बच्चे एक साथ उठक - बैठक लगा रहे हों . पहले तो चंचल ने सोचा कि वह अपने इस मौलिक विचार से पायल को अवगत करा दे - - - मगर फिर उसने ऐसा नहीं किया , क्योंकि उसे खुद अपना ख़याल काफी फूहड़ लग रहा था . वह चुप चाप आँखों ही आँखों , उसकी रूप माधुरी पीने लगा .
" एय ! " अचानक पायल ने उसका ध्यान भंग किया .
" हूँ ! " चौंकते हुए चंचल बोला -- " क्या ? "
" यूँ एक टक क्या देख रहे थे ? " वह मुस्करायी .
" कुछ नहीं . कुछ भी तो नहीं . मै क्या देखूँगा ! तुम कोई ताजमहल हो क्या , जो तुम्हें एक टक देखूँगा !! " चंचल ने हड़बड़ा कर सफाई दी .
" अच्छा जी अब ज्यादा बातें न गढ़ों . नज़ारा बाजी कर रहे थे न ! तुम मर्दों को तो आँख सेंकने का पुराना मर्ज है . वैसे भी प्रेमी को प्रेमिका ताजमहल से कम नहीं दिखती . "
चोरी पकड़ी जाने पर झेंप गया चंचल सटीक चतुराई से बात बदलते हुए बोला -- " आज तुम्हारी आँखें लाल क्यों है जानम ? रतजगा किया है क्या ? "
" तुम ठीक कह रहे हो . बात कुछ ऐसी ही है . मै रात भर सो न सकी . " तीर निशाने पर लगा था और पायल मस्ती में आ गयी .
" चंचल ने कुरेदा -- " क्यों - - - बात क्या है ? "
" चंचल ! जब से तुमने मेरे जीवन में प्रवेश किया है , नींद मेरी आँखों से ओझल हो गयी है . सिर्फ सपने आते हैं - - - सपने . और सपनों में आते हो तुम .
" सच ? "
" नहीं क्या झूठ ! " पायल पर दबे पाँव सुरूर चढ़ने लगा -- " तुम्हें क्या पता चंचल - - - रात भर तुम्हारे सपने ब्लैक - मार्केट से खरीदती हूँ . " उसने चंचल की जाँघों का तकिया बना , उसके कान के निचले मुलायम हिस्से को अपनी नाज़ुक उँगलियों से सहलाकर कहा .
" इधर अपना भी तो यही हाल है जानी . यानि - - - दोनों तरफ है आग बराबर लगी हुई . सच तो ये है कि तुमसे मिलने के बाद समझ आया की ज़िन्दगी में एक लड़की क्या आती है , पूरी की पूरी कायनात ही खींचे लिए आती है . "
" अच्छा जी - - - ये बात है ! " वह इतरायी , फिर बोली -- " मगर ये तो बताओ - - - कल रात तुम सपने में नहीं आये . क्या नाराज थे मुझसे ? "
" धत पगली . तुमसे नाराज होकर भला मै जी सकूंगा ! " उसने पायल के खट मिट्ठे गालों को प्यार से थपकाकर कहा .
" चंचल ! सच मानो - - -- जब से तुम मेरी दुनिया में आये हो , मेरी रातों की नींद और दिन का चैन जाता रहा . जब तुम मेरे पास होते हो , तब तो होते ही हो - - - जब नहीं होते - - - तब भी आस - पास ही होते हो . न पता किस जादू के वश में हूँ . खुद को खुद ही भाने लगी हूँ . हर घड़ी आईने के सामने खड़ी रहने को मन करता है . सोने से पहले सोने का स्वांग करती हूँ और बन्द आँखों से तुम्हारी विविध मुद्राओं का स्वाद छकती हूँ . लगता है - - - मेरी दुनिया - - - जैसे अचानक सिकुड़कर बहुत छोटी हो गयी है . सारी सोच तुम्ही से शुरू होकर - - - तुम्ही पर ख़त्म हो जाती है ." पायल ने बच्चों की सी मासूमियत से अपने दिल को बेपर्दा कर दिया .
उसकी इस अदा पर चंचल कहकहा लगाकर हँस पड़ा . पायल भी अपनी हँसी रोक सकी . वह हंसी-- दो प्याले टकरा जाने वाली कोमल मधुर जलतरंगी हंसी .
फिर एकाएक वह गंभीर होकर कह बैठी -- " चंचल ! एक बात पूछूँ !! सच - सच बताओगे ? "
" तुम्हें यकीन नहीं ? "
" सो तो है - - - मगर न जाने क्यूँ - - - कभी - कभी दिल डरता है . "
" किस बात से ? "
क्या तुम मुझे हमेशा इतना ही प्यार दोगे ?
" ये भी कोई पूछने की बात है ! " इतना कहकर चंचल ने पायल को तनिक ऊपर उठाकर अपनी बाहों में भर लिया . उसे लगा - - - जैसे उसने सेमल के मुलायम ढेर को छाती से लगाया हो .
पायल की काली निराली आँखें विचित्र तरह से नाच - नाच कर रस उड़ेलने लगीं . उसकी रीढ़ का पोर - पोर पायल की तरह छनछना उठा और वो बांस की तरह दूर लहरा कर बोली -- " हटो जी ! बड़े वो हो . "
उसकी वाणी में कोयल ने अपनी कूक भर दी हो , ऐसा लगा . उसकी मादक आवाज से पार्क का चप्पा - चप्पा मदहोश हो गया . पत्ता - पत्ता पीने लगा - - - उसकी शरबती स्वर लहरी को .
रोमांचित चंचल ने बलपूर्वक उसे उठाकर अपने और नज़दीक लाने की कोशिश की तो वह थोड़ा और छिटकते हुए इठलाकर बोली -- " अरे ज जा ! नारी का बोझ संभालने की शक्ति है तुममे ? "
" तुम क्या जानो - - - फूलों का भार चाहे कितना भी हो - - - मगर मादक और हल्का ही लगता है . "
" अच्छा जी ! आज तो कवियों जैसी बातें हो रही हैं . "
" सच पायल ! कवि , पागल और प्रेमी में कोई ज्यादा अन्तर नहीं होता . "
" सो कैसे ? "
" वो ऐसे ! " चंचल मसखरी से बोला -- " प्रेमी यदि प्रेम में असफल हो जाए तो पी - पीकर कवि बन जाता है और सबको जबरन घेर - पकड़ कर अपनी दुःख भरी कविता सुनाता है और यदि कोई भी सुनने को तैयार न हो तो वह पागल हो जाता है . "
पायल हँसकर बोली -- " बिना प्रेम में असफल हुए अभी से ये क्या तुकबन्दी मिला रहे हो ! ज़रा सी पी तो नहीं ली ? "
" नहीं - - - मगर पीने का मन तो कर रहा है . "
" पीते हो ? "
" हाँ ! इधर बीच रोजाना ."
" कौन सी ? "
" तुम्हारी आँखों की . " वह पायल की नाक हिलाकर हँसा .
पायल के अछूते गुलाबी गालों पर शर्म की लाली ने अंगडाई ली और उसकी आँखें और भी सुरमई हो गयीं .
वह बलखाकर बोली -- " हटो जी - - - दिल्लगी करते हो . "
" नहीं - - - मै दिल्लगी नहीं करता . मै तो दिल - लगी करता हूँ . "
" मगर मेरे शब्द - कोष में दिल - लगी के मायने हैं रोमांस . "
वह चंचल हो उठी . बोलती आँखों के इशारे , जो वक्त - बेवक्त तीर बनकर चंचल के कलेजे को छलनी कर दिया करते थे - - - उसकी लड़खड़ाती पलकों की ओट में छटपटाने लगे .
बेचैन चंचल ने आगे झुक कर उसके माथे पर अपने फड़कते होठों से चूमना चाहा .
उसने छिटक कर मीठी बनावटी उलाहना दी -- " हाय दइया - - - बिना चेतावनी हमला बोल दिया ."
इसी के साथ - - - एक बिजली सी कौंध गयी , पायल की नसों में . उसे लगा - - - जैसे इस वक्त उसकी नसों में रक्त नहीं , शराब दौड़ रही हो . उसका पूनमी चाँद सा चेहरा डूबते सूरज सा सुर्ख हो गया , जैसे खून फटकर बाहर निकलना ही चाह्ता हो - - - और पलकें कुछ इस तरह झुकीं , जैसे उन्हें नींद आने लगी हो .
चंचल ने उसका हाथ पकड़ लिया . उसे लगा जैसे जाड़े की मुलायम धूप खाए गुनगुने मखमल पर हाथ रख दिया हो उसने . उसके अचेतन ने पायल को अप्रत्याशित झटका देकर अपनी तरफ खींच लिया . वह गदराये संतरों से बोझल डाल सी चिटक कर चंचल के सीने पर बिछ गयी . उसका सुडौल वक्ष - - - जिसमे हजारों अरमान और लाखों धड़कने कैद थीं , चंचल के कलेजे से भिड़ गया .
चंचल के अन्दर मचल रही चंचलता ने पायल को चिकोटी काटनी चाही - - - मगर वह उसका इरादा भांप कर परे लुढ़क गयी - - - और उठ चुका हाथ गलत जगह पड़ गया .
पायल के मुंह से एक तीखी व मादक सिसकारी निकल पड़ी . साथ ही वह हंसी -- थमी बरसात की इन्द्रधनुषी हंसी .
चंचल अचानक बात बनाते बोला -- " आज तुम कुछ अधिक ही सुन्दर दिख रही हो . '
" जरूरत के वक्त हर लड़की बहुत ज्यादा खूबसूरत दिखती है . "
" अरे नहीं - - - मैं सच कह रहा हूँ . "
" मेरी कसम ? "
" तुम्हारी कसम . "
पायल अपनी प्रशंसा सुनकर सोनजुही सी खिल उठी . उसके रोम - रोम में सुरसुरी दौड़ गयी और अंग - अंग प्रफुल्लित हो उठा .
प्रायः हर नारी अपने रूप की प्रशंसा सुनकर खिल उठती है . और फिर - - - जवानी की दहलीज़ को चूमने वाली कुँवारी अल्हड नवयौवना तो अपनी प्रशंसा का झोंका पाकर फूलों से लदी डाल सी झुक जाती है - - - और खुशियों में खोकर कभी - कभी तो अपना समर्पण तक कर बैठती है .
अपनी प्रशंसा की डोंगी में हिचकोले लेती पायल बोली -- " चंचल ! मै जवानी के सतरंगी इन्द्र धनुष को अपने भीतर पाना चाहती हूँ .उसके सारे रंगों को अलग - अलग देखना और मन की गहराइयों तक अनुभव करना चाहती हूँ . रंग - बिरंगी कलियों को अपने भीतर चिटक कर सुर्ख फूल बनते देखना चाहत हूँ ."
चंचल ने हाथ बढ़ाकर पायल की उँगलियों में अपनी उँगलियाँ फंसा दीं . यह पकड़ . लगता था - - - पायल की उँगलियों में बिजली की धाराएं बह रही हों . जबकि चंचल को अहसास हो रहा था - - - जैसे पायल धीरे - धीरे सारा बसन्ती मौसम ही उसके भीतर सरसाये दे रही हो .
वह बोला -- " पायल . "
" क्या ? "
" अब तो हम दो दिल एक जान हो गये है . पिताजी ने हमें शादी की अनुमति भी दे दी है . तब क्यों न मै अपने प्यार पर एक पक्की मोहर लगा दूं ! "
" भला कैसे ? "
" तुम्हें चूमकर . जी करता है - - - तुम्हारे गाल चूम लूं . चूम लूँ ? "
" हिश - - - कोई देख लेगा . "
" तब ? "
" देख लेने दो . "
पायल बहक गयी . चंचल मचल उठा .
चंचल ने लपक कर पायल के कुंवारे गालों को चूम लिया . ज़िन्दगी में पहली बार अपनी लाटरी लगी देख , उसके गाल तो मानों निहाल हो गए . चुम्बन का नशा फ़ौरन पायल पर छा गया . वह मदहोशी में अनियंत्रित होकर चंचल की बाहों में ढेर हो गयी . उसका अंग - अंग दिल बनकर धड़कने लगा और पोर - पोर छुई - मुई की तरह लाज से सिकुड़ गया . उसकी नसों के रक्त में जलतरंग बज उठी और नाड़ियाँ कुछ इस तरह झनझना उठीं जैसे सितार पर किसी ने अचानक सीधे झाला बजा दिया हो .
जैसा की इस उम्र में - - - इस माहौल में होता है - - - पायल उत्तेजना के सागर में प्रवाहित हो गयी . उत्तेजना ! वासना !!.जहां पहुँच कर दुनिया के सभी भेद समाप्त हो जाते हैं . सभी का आचरण एक सामान हो जाता है . व्यक्ति आदिम युग में लौट आता है . प्रकृति के निकट आ जाता है .
पायल चाह रही थी कि इस वक्त कोई जालिमों कि तरह उसके शरीर को झिंझोड़ डाले . बेदर्दी से कुचल - मसल दे . यहाँ तक कि उसकी नाजुक पसलियाँ चरमरा जाएँ और शरीर लहूलुहान हो जाए .
उसके बेकाबू हाथ ने चंचल को अपनी ओर खींच लिया . चंचल ने पागलों की तरह उसे जहाँ - तहां चूमना शुरू कर दिया . उसके शरीर में एक आग सी लगी हुई थी .
और लगभग निश्चित था कि उसकी तथाकथित नैतिकता इस आग में - - - कुछ पलों में भस्म हो जाती . धैर्य का बाँध टूट जाता . मगर तभी - - - चंचल के मस्तिष्क में विवेक की एक बिजली सी कौंधी और उसकी विस्तार पायी उत्तेजना अचानक सिकुड़ कर शान्त पड़ गयी . वासना की आग ठंढी पड़ गयी . वो छिटक कर पायल से दूर हो गया . जबकि तूफ़ान से गुज़र रही पायल यूँ खुच्चड़ हो चुके खेल में खुद को अकेली पाकर बेचैनी व बेबसी से उसे निहारती रह गयी .
चंचल बोला -- " पायल ! हमें अपनी भावनाओं पर अंकुश रखना चाहिये . कम से कम शादी तक . मैं समझता हूँ - - - आज एक बड़ा पाप होने से बच गया . "
" - - - - - - - - -" पायल कुछ न बोली . वह विवशा अनुभव करती रही - - - जैसे उसकी तेज साँसों की गर्मी से उसी के भीतर हौले -हौले कुछ पिघला जा रहा हो . शायद उसके अरमान . चंचल पुनः बोला -- " पायल ! "
" हूँ . "
" अगर मै बहक भी जाऊं तो कम से कम तुम्हें तो अपने पर नियंत्रण रखना चाहिये . "
" पता नहीं - - - तुम मर्द , हम औरतों से ही नियंत्रण की उम्मीद क्यों रखते हो ! और वैसे भी - - - जब दो जवाँ दिल हों और ऐसा अनुकूल एकांत हो - - - चुम्बनों की बौछार हो और बाहों के घेरे हों - - - तो आखिर कब तक खुद पर नियंत्रण रखा जा सकता है ! ! "
" कुछ भी हो - - - नियंत्रण तो रखना ही होगा खुद पर .यही सभ्य समाज का नियम है . सामाजिक नियमों - बन्धनों का पालन करना हमारी नियति है . क्योंकि हमें इसी समाज के बीच जीवन बिताना है . पायल ! शादी से पहले - - - स्त्री - पुरुष के सम्बन्ध विशेष को मैं भी अच्छा नहीं मानता . बल्कि यूँ समझो , पाप की संज्ञा देता हूँ . शादी तक तुम्हे ईमान की तरह अपने शरीर को संभाल कर रखना चाहिए . मुझसे भी . यूँ समझो - - - संयमित आचरण से भावी जीवन में बहुत सी संभावित समस्याओं से बचा जा सकता है . "
" - - - - - - - " पायल की सुराहीदार गर्दन ग्लानि के बोझ से लोच खाकर झुक गयी . उसने कहा तो कुछ नहीं - - - लेकिन उसे लगा जैसे चंचल सारा दोष उसी के मत्थे मढ़कर नाइंसाफी कर रहा हो .
उसकी मनोदशा का अनुमान लगाकर चंचल ने समझाया -- " पायल ! मैं ये मानता हूँ कि भविष्य में शीघ्र ही हमें एक होना है . हमारा विवाह निश्चित है . पर फिर भी थोड़ी देर के लिए ये मान लो - - - यदि आज हमारा शारीरिक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है और तुम संयोगवश गर्भवती हो जाती - - - लेकिन कल को मै आवारा निकल जाऊं या शादी से इन्कार कर दूं - - - अथवा किसी दुर्घटना में मारा जाऊं - - - तो भुगतना किसे पड़ेगा ! तुम्हें - - - और केवल तुम्हें . याद रखो - - - जवानी की संयुक्त भूल की कीमत सदा अकेले स्त्री को ही अदा करनी पड़ती है . इसीलिए कहता हूँ - - - हमें इन गलतियों से बचना चाहिए . विशेषकर लड़कियों को . "
" बस करो - - - अब चुप भी रहो . क्यों मरने - खपने का अपशगुन अलापते हो ! " पायल ने चंचल के मुंह पर अपना हाथ रख दिया और उसकी आँखों में ग्लानि छलछला आई .
" आओ - - - अब घर लौट चलें . " चंचल ने कहा .
बोझल हो चुके वातावरण को सामान्य बनाने की गरज से पायल ने बड़े सयानेपन से अपने होठों पर कृतिम मुस्कान और आँखों में शिकायत उकेर कर कहा -- " नसीहतें तो इतनी ढेर सी पिला दीं गुरूजी - - - अब कहीं बैठाल कर कुछ खिला तो दो निष्ठुर . "
अपनी बेवकूफी को समझ और उसकी होशियारी को ताड़ - - - चंचल पहले तो कुछ झेंपा , फिर मुस्कराकर बोला -- " तुम बड़े साफ़ दिल की व्यवहारिक पत्नी सिद्ध होओगी . चलो - - - इसी बात पर किसी आइसक्रीम पार्लर में चलते हैं . शायद इससे उबलते अरमान भी शादी तक के लिए ठंढे पड़ जाएँ . है न ! "
इतना कहकर हँसते हुए चंचल ने हाथ का सहारा देकर पायल को उठा लिया . दोनों पिछली बातों को भूलकर हाथों में हाथ डाल पार्क से बाहर निकल पड़े .

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