Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
भारतीय मिथक कथा
रूरू और प्रमद्वरा
रूरू और प्रमद्वरा की प्रेम-कथा को पढ़ने और समझने से पहले हम यह जान लेते है कि रूरू कौन था? और प्रमद्वरा कौन थी? और कैसे इनका मिलन हुआ?
रूरू के जन्म की पृष्ठभूमि :
सप्तॠषियों में से एक महर्षि भृगु का नाम आपने अवश्य सुना होगा. इनके सुपुत्र थे महर्षि च्यवन जो देवताओं के वैद्य भी थे. अश्विनीकुमारों की कृपा से महर्षि च्यवन को अखंड यौवन का वरदान मिला. उन्होंने राजा शर्याति की सुपुत्री सुकन्या से प्रमति नामक अत्यंत रूपवान पुत्र को जन्म दिया. प्रमति भी अपने पिता की भांति तेजस्वी महर्षि हुआ. युवावस्था में, एक बार प्रमति नृत्य करती अप्सरा घृताची पर मुग्ध हो गया. घृताची भी प्रमति पर आसक्त थी. दोनों के सम्मिलन से रूरू नामक एक अत्यंत सुन्दर पुत्र का जन्म हुआ.
प्रमद्वरा के जन्म की पृष्ठभूमि :
गंधर्वराज विश्वावसु एक बार किसी पर्वतीय स्थल की रमणीक दृष्यावली का आनंद लेते हए भ्रमण कर रहे थे. अकस्मात् उनकी दृष्टि सरोवर में स्नान करती, अनिंद्य सुंदरी विवस्त्रा अप्सरा मेनका पर पड़ी. गन्धर्वराज कामविव्हल हो उठे. उन्होंने मेनका से प्रणय याचना की. मेनका ने उन्हें उदारतापूर्वक कृतार्थ किया. दोनों के समागम से अत्यंत रूपवती कन्या का जन्म हुआ.
मेनका ने नवजात कन्या को महर्षि स्थूलकेश के आश्रम में छोड़ दिया. हृदयहीन मेनका ने अपनी एक कन्या शकुंतला को महर्षि कण्व के आश्रम में पलने के लिए छोड़ दिया तो दूसरी बेटी के लिए उसने महर्षि स्थूलकेश का का आश्रम चुना. जिस प्रकार अपनी बेटी शकुंतला से पिता विश्वामित्र ने कोई संपर्क नहीं रखा उसी प्रकार मेनका की इस दूसरी बेटी से भी उसके पिता गंधर्वराज विश्वावसु ने कोई सम्बन्ध नहीं रखा. कैसी निर्मम मां थी मेनका और कैसे प्रस्तर-ह्रदय थे इन दोनों के महान विचारक महर्षि और ब्रह्मॠषि कहलाने वाले पिताओं के. जिस प्रकार महर्षि कण्व ने शकुंतला का पालन पोषण किया था उसी प्रकार महर्षि स्थूलकेश ने भी मेनका की दूसरी पुत्री का पिता की तरह पालन पोषण किया और उसका नाम प्रमद्वरा रखा. सचमुच वह प्रमदाओं में श्रेष्ठ थी. वह रूप, शील और गुण का मूर्तरूप थी.
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