Re: चाणक्यगीरी : निर्वहण-अंश
लड़ाई बन्द करवाने के चक्कर में झूठ बोलकर अपनी ही बातों में फँसी ज्वालामुखी ने सकपकाकर और अधिक सफ़ेद झूठ बोलते हुए कहा- 'यह बात मुझे अपनी तांत्रिक शक्ति से पता चली है। आपस में लड़ने से इस समस्या का हल नहीं निकलेगा। चैन की नींद सोने के लिए हमें चाणक्य को ख़त्म करना होगा। इसके लिए मौर्य देश में अजूबी चाणक्य पर डोरे डाले अौर स्वयं विद्योत्तमा अजूबी का समर्थन करे तो चाणक्य अजूबी के प्रेमजाल में अवश्य फँस जाएगा। इसके बाद अजूबी चतुराईपूर्वक चाणक्य को मैसूर बुलाए। मैसूर में चाणक्य को अकेला पाकर उसका काम तमाम कर दिया जाएगा।'
अजूबी ने अपने मन में सोचा- 'ज्वालामुखी की योजना के अनुसार काम करने में ही बुद्धिमानी है। ऐसे तो विद्योत्तमा चाणक्य से इश्क़ लड़ाने नहीं देगी। आने दो चाणक्य को मैसूर। बेडरूम में चाणक्य की चिकनी लाइट मारती खोपड़ी सहलाकर चाणक्य का काम तमाम कर दूँगी। जब चाणक्य अपना हो जाएगा तो भला मुझे चाणक्य से डरने की क्या ज़रूरत?'
विद्योत्तमा ने अपने मन में सोचा- 'ज्वालामुखी की योजना के अनुसार काम करने में ही बुद्धिमानी है। डालने दो अजूबी को चाणक्य पर डोरे। चाणक्य मुझसे प्रेम करता होगा तो अजूबी की तरफ कभी नहीं जाएगा और अगर गया भी तो मैसूर में चाणक्य को उसकी दगाबाज़ी की सज़ा मिल ही जाएगी। मैसूर में अजूबी चाणक्य का काम तमाम कर देगी और सर्वदेश महासंघ में मेरा नाम भी कहीं नहीं आएगा। चाणक्य मेरा नहीं तो किसी का नहीं होने दूँगी!'
पूर्वनियोजित योजना के अनुसार मौर्य देश में अजूबी चाणक्य पर डोरे डालने लगी और विद्योत्तमा अजूबी का समर्थन करने लगी। यह देखकर चाणक्य के कान खड़े हो गए, क्योंकि चाणक्य ने तक्षशिला विश्वविद्यालय में चल रही अपनी पुस्तक 'नाट्य लेखन विधा' के सातवें अध्याय में लिखा था- 'जब अपनी प्रेमिका स्वयं प्रेम करना छोड़कर अपनी सहेली को प्रेम करने के लिए उकसाए तो इसका अर्थ होता है- प्रेमिका किसी असाध्य बीमारी के कारण मरने वाली है अौर मरने से पहले वह अपने प्रेमी को अपनी सहेली के साथ देखकर खुश होना चाहती है।'
चाणक्य का दिल हाहाकार करने लगा- 'बाहर से हट्टी-कट्टी मोटी-ताज़ी लगने वाली विद्योत्तमा को इतनी खतरनाक बीमारी? अगर विद्योत्तमा को पता चल गया कि मुझे उसकी खतरनाक बीमारी के बारे में पता चल चुका है तो मुझे दुःखी देखकर बेचारी और दुःखित हो जाएगी। इसलिए विद्योत्तमा को खुश रखने के लिए ज़रूरी है- वही किया जाए जो विद्योत्तमा चाहती है, तभी बेचारी विद्योत्तमा की आत्मा को शान्ति मिलेगी।' चाणक्य ने अत्यन्त दुःखित मन से अजूबी को हरी झण्डी दिखा दिया।
चाणक्य के हरी झण्डी दिखाते ही अजूबी ने एक चाल चलकर विद्योत्तमा को मौर्य महल से निष्कासित करवाना चाहा, किन्तु चाणक्य ने एक कान से सुनकर दूसरे से बाहर निकाल दिया।
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