Re: कहानी: मिट्टी का माधव
भाग 2 ( अगस्त 1947 )
एक मुल्क को दो हिस्सों में बाँट दिया गया था ., ! मजहब के नाम पर एक लकीर खीच दी गयी और वो लकीर जमीन पर ही नही इंसान की इंसानियत पर भी खिची थी . सरहद के नाम पर खिची गयी उस लकीर ने वजूद , परंपराएं , ईमान , इंसाफ , मोहब्बत सब कुछ बाँट दिया था . अब दुनिया के सामने थे तो महज एक ही वतन के लहू से भीगे दो टुकड़े पाकिस्तान और हिंदुस्तान .
पूरे मुल्क की तरह दिल्ली भी बटवारे की आग में जल उठी . सदियों से साथ रह रहे इंसान भगवान और खुदा के बंदो के रूप में बंट गए .
माधव उस वक्त पार्टी के काम से दिल्ली से बहुत दूर नागपुर में था . दंगे शहर के शहर झुलसाने लगे . सब खत्म होने लगा . चारो तरफ आग थी सिर्फ नफरत की आग .
....... और माधव जब कई दिनों बाद किसी तरह अपने मोहल्ले में पहुँचा तो सब कुछ खत्म हो चुका था आग अब ठंडी पड़ने लगी थी . दंगइयो से अनवर अली का घर बचाने के प्रयास में मुंशी रामनारायण मिश्रा अपाहिज हो घर के एक कोने में पड़े थे . मिश्राइन की आंख की आंसू सुख चुके थे .
माधव भागता हुआ मुमताज के घर पहुँचा .. अब वहाँ था तो जला लुटा और गिरा हुआ मकान मात्र .
मौलना साहब और रज्जो ने पाकिस्तान जाने से इंकार कर दिया था . और अंत तक अपना घर अपना मुल्क छोड़ने को राजी नही हुए थे . उनके लिए पाकिस्तान आज भी एक गैर मुल्क था . पर जब मुंशी जी दंगाईयो की भीड़ से मौलाना साहब के घर को न बचा सके थे तो वो रज्जो और मुमताज के साथ से घर छोड़ कर भागे थे . पर किस से और कितनी दूर भाग सकते थे अनवर अली ???
अगली गली के मोड़ पर ही उनकी गर्दन पर तलवार और रज्जो के पेट पर छुरे का वार हो गया और वो.....
>>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
|