Re: महायमराज
श्रीमद्भगवत्गीता में आत्मा को अजर और अमर बताते हुए श्रीकृष्ण ने कहा है- 'नैनं छिदंति शस्त्राणी, नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयां तापो, नैनं शोशयति मारूतः।।' अर्थात्, आत्मा वो है जिसे किसी भी शस्त्र से भेदा नहीं जा सकता, जिसे कोई भी आग जला नहीं सकती, कोई भी दु:ख उसे तपा नहीं सकता और न ही कोई वायु उसे बहा सकती है। जन्म-मरण के चक्र को समझाते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं- 'वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरो पराणि। शरीराणि विहाय जीर्णा- न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।' अर्थात्, जिस प्रकार हम जीर्ण वस्त्र को तजकर नए वस्त्र धारण करते हैं, उसी प्रकार जर्जर तन को तजकर आत्मा नया शरीर धारण करती है।
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