17-04-2013, 09:44 PM
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#51
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Re: इधर-उधर से
महावीर सिंह का पत्र
प्रिय मित्र रजनीश,
आज एक कविता से पत्र को शुरू कर रहा हूँ:
पूर्व चलने के बटोही राह की पहचान कर ले
पुस्तकों में है नहीं छापी गई इसकी कहानी,
हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की जुबानी.
अनगिनत राही गए इस राह से उनका पता क्या?
पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरों की निशानी.
यह निशानी मूक हो कर भी बहुत कुछ बोलती है,
खोल इसका अर्थ पंथी, पंथ का अनुमान कर ले.
कौन कहता है कि सपनों को न आने दे हृदय में,
देखते सब हैं इन्हें अपनी उमर, अपने समय में.
और तू कर यत्न भी तो, मिल नहीं सकती सफलता,
ये उदय होते लिए कुछ, ध्येय नयनो के निलय में.
किन्तु जग के पंथ पर यदि स्वप्न दो तो सत्य दो सौ,
स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो, सत्य का भी ज्ञान कर ले.
पूर्व चलने के बटोही, राह की पहचान कर ले.
केवल आपका ही चिरंतन,
महावीर
16.08.1977
Last edited by rajnish manga; 18-04-2013 at 10:50 AM.
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