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rajnish manga
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Default Re: इधर-उधर से

मानव – प्रेम
(यशपाल जैन)

अमरीका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन बड़े सरल और निश्च्छल व्यक्ति थे. सादगी के साथ रहते थे और और दूसरों के साथ बहुत ही प्रेम का व्यवहार करते थे.

शासक कितना ही अच्छा क्यों न हो, उसके कुछ न कुछ आलोचक या विरोधी हो ही जाते हैं. जिसका काम न हो वह शत्रु बन जाता है. अब्राहम लिंकन के भी कुछ शत्रु थे जो उन्हें हानि पहुंचाने के लिए निरंतर प्रयत्न करते रहते थे. कभी कभी लिंकन बड़े दुखी हो जाते थे, पर वह अपने सद्व्यवहार को नहीं छोड़ते थे.

एक दिन लिंकन के कुछ हितैषी उनके पास आये. उन्होंने गंभीर हो कर पूछा, “आपके दुश्मन आपको लगातार नुक्सान पहुंचा रहे हैं, फिर भी आप उनके साथ अच्छा सलूक किये जा रहे हैं. उनका सफाया क्यों नहीं कर देते? आपके हाथ में सत्ता है.”

लिंकन ने मुस्कुरा कर कहा, “मैं अपने दुश्मनों का सफाया करने के लिए ही तो कोशिश कर रहा हूँ.”

“कोशिश कर रहे हैं!” लोगों ने विस्मय से पूछा, “ऐसा देखने में तो नहीं आ रहा है. आपने तो कभी किसी की ओर उंगली तक नहीं उठाई!”

लिंकन चुप चाप उनकी बात सुनते रहे. फिर धीरे से बोले, “आप अचम्भा क्यों कर रहे हैं? मैं जो कह रहा हूँ, वह ठीक ही कह रहा हूँ. मैं दुश्मनों को दोस्त बना कर दुश्मनी का सफाया ही तो कर रहा हूँ.”

लोगों ने अब समझा कि राष्ट्रपति का आशय क्या था! उनका सिर उनके मानव प्रेम के सामने अपने आप झुक गया.
*****
एक बार अब्राहम लिंकन से उनके मिलने वालों ने पूछा, “आप अपने विरोधियों से किस प्रकार निबटते हैं?”
लिंकन ने जवाब दिया, “मैं उनको पत्र लिखता हूँ और अपने दिल का गुबार पत्रों में भर देता हूँ.”
“तो फिर यह पत्र आप विरोधियों को भेजते हैं?”
“नहीं, मैं वह पत्र लिख कर नष्ट कर देता हूँ.” लिंकन ने जवाब दिया.
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