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Old 19-04-2013, 12:26 AM   #60
rajnish manga
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Default Re: इधर-उधर से

22.4.1973 की मेरी डायरी के अंश

आज दिन भर अध्ययन नहीं हो सका. अमृत (मेरा मित्र और कॉलेज का सहपाठी) लगभग 11 बजे से ही साथ था. बड़ा दुखी लग रहा था. अपनी समस्याएं उसने सामने रखीं; कुछ विचार मन में उभरे. उसकी एक कमी की ओर मेरा ध्यान गया – वह अपने दो पाँव चार नावों में रखना चाहता है. इस प्रकार किसी के कार्य सिद्ध हुए हैं? मेरे विचार से तो नहीं. योजना, गणना और परिस्थिति को सामने रख कर उठाये हुए कदम ही कार्य-सिद्धि में सहायक हो सकते हैं. कोरी भावना और संवेगों का लावा जीवन को स्थिरता देने के बजाय एक झंझा के साथ बाँधने का काम करते हैं. कुल मिला कर ऐसी परिस्थियियों में मन उद्विग्न एवं मस्तिष्क निष्पंद होने लगता है.

दूसरी बात जो मैंने उससे जो कही वह यह थी कि मन और मस्तिष्क को दो स्वतंत्र इकाइयों के रूप में मत राणे दो. यह देखना भी जरूरी है कि दोनों की शक्तियां एक दूसरे पर हावी न होने पायें. इन दोनों में जब तक हमाहंगी और परस्पर आदर का भाव नहीं होगा तब तक समायोजन न हो सकेगा. ऐसी स्थिति में चिंता, तनाव, हताशा, दुविधा, कसक आदि वृत्तियाँ एकजुट हो कर जीवन में कटुता भरने में कोई कसर नहीं छोड़तीं.
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