उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
रात भर नींद नहीं आई पर थाने मे हलचल चलती रही। किसी से पूछने पर भी वह कुछ नहीं बताता था। सुबह पता चला कि अपने थाना ले जाएगें और फिर जेल। सुबह रीना के परिजनों के साथ साथ मैं भी रेलगाड़ी पर एक दो पुलिस वाले के साथ बैठ गया और फिर बिहारशरीफ होते हुए अपने शहर। थाने में पहूंचा तो जंगली आग की तरह छोटे से शहर से लोग दौड़ दौड़ कर थाना देखने आने लगे। भीड़ मेले की तरह उमड़ पड़ी। शायद इस तरह का यह पहला मामला था।
यहां आकर कुछ अकड़ ढीली होने लगी। मन में अपने इस कृत्य के लिए शर्मिंदा हो रहा था, नजर झुकी रहती और आंखें नम। फिर घर से छोटा भाई, चाचा इत्यादी भी आ गए। आंखो से अविरल आंसू निकलने लगा। इसलिए नहीं कि ऐसा क्यों किया बल्कि इसलिए कि घर परिवार के बारे में नहीं सोंचा। फिर बाबू जी आए तो मैं और फूटफूट कर रोने लगा।
जिस पर उनको गर्व था उसी ने उसे चूर चूर कर दिया।
पुलिस यहां भी मैनेज किया जा रहा था और अब रूपये के दम पर वह घर जाएगी और मैं जेल। बगल के कमरे रीना भी बैठी थी और मेरे रोने की आवाज सुन कर चली आई। हाजत में आकर मेरा हाथ थाम लिया और बोली।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 11-11-2014 at 09:15 PM.
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