23-09-2011, 12:35 AM
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#5
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Re: दुश्यन्त कुमार की कविताएँ
कहाँ तो तय था
कैसे मंजर
खंडहर बचे हुए हैं
जो शहतीर है
ज़िंदगानी का कोई मकसद
मुक्तक
आज सड़कों पर लिखे हैं
मत कहो, आकाश में
धूप के पाँव
गुच्छे भर अमलतास
सूर्य का स्वागत
आवाजों के घेरे
जलते हुए वन का वसन्त
आज सड़कों पर
आग जलती रहे
एक आशीर्वाद
आग जलनी चाहिए
मापदण्ड बदलो
कहीं पे धूप की चादर
बाढ़ की संभावनाएँ
इस नदी की धार में
हो गई है पीर पर्वत-सी
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