Re: डार्क सेंट की पाठशाला
ज्ञान की राह पर चलने का संकल्प
गौतम बुद्ध के प्रवचन में एक व्यक्ति रोज आता था और ध्यान से उनकी बातें सुनता था। गौतम बुद्ध भी देखते थे कि वह व्यक्ति आता रोज है, लेकिन वे उससे कुछ पूछते या कहते नहीं थे। उसका चेहरा देख कर इतना जरूर समझ रहे थे कि वह व्यक्ति उनसे कुछ पूछना चाहता है, लेकिन गौतम बुद्ध फिर भी यह सोच कर चुप हो जाते थे कि एक न एक दिन तो वह व्यक्ति अपनी झिझक तोड़ कर उसके मन में जो शंका है, उस बारे में सवाल पूछ ही लेगा। एक दिन वह व्यक्ति बुद्ध के पास आकर बोला, मैं लगभग एक महीने से आपके प्रवचन सुन रहा हूं, पर क्षमा करें। मेरे ऊपर उनका कोई असर नहीं हो रहा है। इसका कारण क्या है? क्या मुझमें कोई कमी है? बुद्ध ने मुस्कराकर पूछा - यह बताओ, तुम कहां के रहने वाले हो? उस व्यक्ति ने कहा - श्रावस्ती का। बुद्ध ने पूछा - श्रावस्ती यहां से कितनी दूर है? उसने दूरी बताई। बुद्ध ने पूछा - तुम वहां कैसे जाते हो? व्यक्ति ने कहा - कभी घोड़े पर जाता हूं, तो कभी बैलगाड़ी में जाता हूं। बुद्ध ने फिर प्रश्न किया - वहां पहुंचने में कितना समय लगता है? उसने हिसाब लगाकर समय बताया। बुद्ध ने कहा - यह बताओ, क्या तुम यहां बैठे-बैठे श्रावस्ती पहुंच सकते हो? व्यक्ति ने आश्चर्य से कहा - यहां बैठे-बैठे, भला वहां कैसे पहुंचा जा सकता है। इसके लिए चलना तो पड़ेगा या किसी वाहन का सहारा लेना पड़ेगा। बुद्ध मुस्कराकर बोले - तुमने बिल्कुल सही कहा। चल कर ही लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। इसी तरह अच्छी बातों का प्रभाव भी तभी पड़ता है, जब उन्हें जीवन में उतारा जाए। उसके अनुसार आचरण किया जाए। कोई भी ज्ञान तभी सार्थक है, जब उसे व्यावहारिक जीवन में उतारा जाए। मात्र प्रवचन सुनने या अध्ययन करने से कुछ भी प्राप्त नहीं होता। उस व्यक्ति ने कहा - अब मुझे अपनी भूल समझ में आ रही है। मैं आपके बताए मार्ग पर आज से ही चलूंगा। बुद्ध ने उसे आशीर्वाद दिया।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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