Re: डार्क सेंट की पाठशाला
एक भक्त की आराधना
भगवान विट्ठल का एक नेत्रहीन भक्त था कात्यायन । वह रोज विट्ठल के भजन गाता और उनकी आराधना करता था। कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता था, जब वह अपने प्रिय विट्ठल को याद नहीं करता हो। हालांकि वह नेत्रहीन था, लेकिन भजन गाते समय ऐसा लगता मानो विट्ठल उसे दिखाई दे रहे हों। एक बार कात्यायन के गांव के पास पहाड़ी पर स्थित विट्ठल के मंदिर में एक मेले का आयोजन किया गया। भला विट्ठल का भक्त वहां कैसे नहीं जाता? उसने मेले में जाने का फैसला किया हालांकि नेत्रहीनता के कारण परेशानी का सामना करना पड़ेगा, वह यह जानता था, लेकिन वह किसी के भी रोकने से नहीं रुका। मेले में अन्य श्रद्धालुओं के साथ जा रहा था और पूरे उत्साह के साथ विट्ठल के भजन गा रहा था। भीड़ में हट्टे-कट्टे नौजवान भी थे और कई वयस्क स्त्री-पुरुष भी हांफते हुए रास्ता पार कर रहे थे। कात्यायन को देखकर एक युवक ने पूछा, पहाड़ी तो बहुत ऊंची है और अभी चौथाई रास्ता भी पार नहीं हो पाया है। तुम वहां तक कैसे पहुंच पाओगे? कात्यायन हंसते हुए बोला - मित्र, मैं तो केवल अपना शरीर ढो रहा हूं। मेरी आत्मा तो कब की ऊपर विट्ठल के पास जा चुकी है। इस जवाब ने युवक में जोश भर दिया और वह भी जयकारा लगाता हुआ ऊपर चढ़ने लगा। वह अपने सारे कष्ट भूल गया। हालांकि सबसे अधिक कष्ट कात्यायन को ही हो रहा था, फिर भी वह अपनी गठरी और झोला संभाले चला जा रहा था। जब सब ऊपर मंदिर के पास पहुंचे तो एक भक्त ने कात्यायन से पूछा - आप इतने कष्ट उठाकर यहां तक क्यों आए? आपकी तो आंखें ही नहीं हैं। भला, आप क्या दर्शन करेंगे? इस पर कात्यायन ने थोड़ा भावुक होकर कहा - भाई, मैं विट्ठल को न देख पाऊं तो क्या हुआ। मेरा विट्ठल तो मुझे पहाड़ी से ही देख रहा है। जो सबको देखता है, उसे मैं देख पाऊं या नहीं देख पाऊं, उससे क्या फर्क पड़ता है। मेरा मानना है कि वह मुझे देख रहा है।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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