Re: डार्क सेंट की पाठशाला
गमले तोड़ने का राज
जोसेफ मोनियर नाम का एक शख्स था। उसे नए-नए पौधे लगाने का बहुत शौक था। वह अपने इस शौक के लिए हरदम जुटा रहता था। उसकी एक और आदत थी कि नए पौधे लगाने के साथ वह मिट्टी के गमले भी खुद बनाता था। शुरू में तो कुछ दिनों तक उसने यही किया कि जो भी पौधा वह लगाता था उस गमले को सहेज कर रखता था लेकिन बाद में उसे न जाने क्या सूझी कि वह पौधे लगाने के लिए जो भी गमला बनाता उसे तोड़ डालता था। उसने कई दिनों तक ऐसा ही किया। रोज गमला बनाए और रोज ही उसे तोड़ डाले। लोगों ने उसे ऐसा करते देखा तो कुछ दिन तो चुप रहे लेकिन जब उसका यह क्रम बना रहा तो कहने लगे कि यह आदमी तो पागल है जो रोज मेहनत करके गमले तो बनाता है और फिर खुद ही तोड़ देता है। उस पर लोगों की बातों का कोई असर नहीं पड़ता था। वह अपने काम में लगा रहा। मिट्टी के गमले बना कर उन्हें तोड़ते हुए जब मोनियर को काफी समय हो गया तो उसने अपना ध्यान मिट्टी के गमलों पर से हटा दिया और सीमेंट के गमले बनाने शुरू कर दिए। मोनियर ने देखा कि सीमेंट के गमले ज्यादा मजबूत थे। उसने उन्हें भी तोड़ डाला और यह निष्कर्ष निकाला कि ये हल्के नहीं थे। इसके बाद उसने तार लपेट कर गमले बनाए पर उसमें जंग लग गया। एक दिन मोनियर ने गमले के अंदर तार लपेटे और उसमें कंक्रीट व सीमेंट भर दी। ये हल्के और मजबूत थे। तार में जंग भी नहीं लगा। ये गमले अत्यधिक मजबूत और टिकाऊ थे। गमलों में प्रयुक्त इस पद्धति को जब इंजीनियरों ने देखा तो वे दंग रह गए। इसके बाद भवनों के निर्माण में इसी तरह की पद्धति का प्रयोग होने लगा। आज इसका प्रयोग विशालकाय बहुमंजिला इमारतों के निर्माण में हो रहा है। बहुत कम लोग जानते हैं कि भवनों के निर्माण की मजबूत आधारशिला रखने वाला यही सनकी जोसेफ मोनियर ही था।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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