Re: !! मेरी कहानियाँ > रजनीश मंगा !!
कई बार माँ उसे समझाने का प्रयत्न करती तो उन्हें भी वह जली कटी सुना बैठता. माँ उससे फिर क्या बहस करती ? उसे कुछ न सूझता, अतः अधिकतर समय अपनी कोठरी में ही बैठी रहती.
बेचारी सुगरां का तो सबसे बुरा हाल था. ऐसी कठिन परिस्थितियों से उसे जीवन में कभी न गुज़ारना पड़ा था. इसलिये उसके मन पर अपने पति के रूखे व कठोर व्यवहार का गहरा आघात लगा. सबसे अधिक ज्यादती भी उसी के साथ होती थी. उसकी उम्र कोई ख़ास नहीं थी. अभी तो उसने गृहस्थ जीवन के सलोने सपने देखने ही शुरू किये थे, उनकी ताबीर के बारे में अभी कुछ सोच ही न पायी थी. ऐसे में पति का प्यार उसका बहुत बड़ा सहारा था, उसका संबल था. किन्तु अब ..... वक़्त ने ऐसी करवट ली कि उसके नीचे उसके सारे कोमल और सुनहरे सपने दब कर रह गये थे. पति की उपेक्षा, प्रताड़ना और उसके बाद होने वाली मारपीट ने उसे बुरी तरह तोड़ डाला था. इस टूटन के कारण उम्र से पहले ही वह जैसे बूढी हो गयी थी. मन मार कर जितना बन पड़ता काम करती, पर जल्द ही थक जाती और हांफने लगती. इस दशा में वह छत की कड़ियों पर दृष्टि अटकाते हुये अपने मौला से दुआ मांगती कि ‘ऐ मौला, तूने हमें जैसा भी रखा, हम रहे. अब और सहन नहीं होता. इसलिये मुझ अभागन को तू इस दुनिया-ए-फ़ानी से उठा ले.’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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