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Originally Posted by deepuji1983
दिखावा भर है वरना कहाँ अपना मानते है लोग
जब सच कहो तो कितना बुरा मानते हैं लोग
क्यों बे वजा सुनाये आलम अपने दिल का यहाँ
यहाँ गैरो के आंसुओ को भी झूठा मानते है लोग
सुना सुनाया भर है कि खुदा दिलों मे बसता है
देखा तो ये कि दौलत को खुदा मानते है लोग
चुस्त है बहुत लोगों के जज्बात यहाँ आजकल
क्या बताये अब इन्हें नहीं कहा मानते है लोग
शामिल तो हो जाते है सब जनाजे की भीड़ मे
फब्तियों मे कहाँ मुर्दे को मरा मानते है लोग
चाह बेइंतिहा हो गई है बुलंदियों को पाने की 'रौनक'
रास्ता हो गर बद से बुरा तो भी भला मानते है लोग
दीपक खत्री 'रौनक
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sach hai khatrii jii aulat ko hii khudaa maanate hai log