Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
दूसरे दिन बहमन ने अपनी बहन से पूरी जानकारी ली और अस्त्र-शस्त्र ले कर घोड़े पर बैठ गया। अब परीजाद उसे देख कर रोने लगी और बोली, भैया, मैं भी बड़ी दुष्ट हूँ जो अपने जरा-से शौक के लिए तुम्हें मुसीबत में फँसा रही हूँ। मैं अपनी माँग वापस लेती हूँ। अब कभी तीनों चीजों में एक का भी उल्लेख नहीं करूँगी। तुम न जाओ। बहमन ने कहा, एक बार कमर कस कर मैं पीछे नहीं हटता। अगर अब मैं सफर नहीं करता तो हमेशा मेरे दिल में यह खटक रहेगी कि मैं कायर हूँ।
परीजाद ने कहा, यहाँ हम लोग भी तो परेशान रहेंगे। हमें नहीं मालूम हो सकेगा कि तुम किस हाल में हो। बहमन ने कहा, इसका प्रबंध मैं कर रहा हूँ। यह खंजर लो। यह जादू की चीज है। रोज इसे म्यान से निकाल कर देखना। अगर यह साफ और चमकता हुआ दिखाई दे तो समझना कि मैं जहाँ भी हूँ सकुशल हूँ। लेकिन अगर इसमें से खून की बूँदें टपकने लगें तो समझ लेना कि मैं जीवित नहीं रहा। यह सुन कर परवेज और परीजाद और अधीर हुए और बहमन से कहने लगे कि ऐसी खतरनाक यात्रा न करो। लेकिन बहमन ने उनकी बात न सुनी और घोड़ा दौड़ा दिया।
बहमन सीधी राह पर लग लिया। उसने ध्यान रखा कि कहीं दाएँ-बाएँ न मुड़ जाए। फारस की राजधानी से बीस दिन की राह पूरी करने पर वह सोच रहा था कि आगे जाऊँ या न जाऊँ। तभी उसे एक अजीब-सा दृश्य दिखाई दिया। एक घने पेड़ के नीचे एक झोपड़ा पड़ा हुआ था और उसके बाहर एक बूढ़ा बैठा था जिसे बहुत ध्यान से देखने पर ही मालूम होता था कि कोई आदमी बैठा है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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