Re: कम हई महगाई हास्य व्यग कहानी
उन पियक्कड़ों से किसी तरह पीछा छुड़ाया। मैंने तय कर लिया आइंदा किसी बेवड़े को छेडऩे की हिम्मत नहीं करूंगा। उनकी साधना में मैं विघ्न नहीं डालूंगा वरना अपनी साधना में ये लोग मुझे भी जबर्दस्ती शामिल कर लेंगे। इतनी भागदौड़ के बाद मुझे घर की याद आई। घर जा ही रहा था कि सामने से साक्षी आते दिखी। मुझे देखते ही बोली- “क्या बात है, आज बहुत रसगुल्ला बांट रहे हो। अब महंगाई कम हुई ही है तो चलो फिल्म चलते हैं। तुम ही तो मोहल्लेभर में ढिढोरा पीटते फिर रहे हो कि महंगाई कम हो गई और अब फिल्म का नाम लिया तो शक्लें बना रहे हो।” मैंने सोचा फिल्म मतलब केवल फिल्म ही नहीं साथ में रेस्टारेंट में जेब कटवाना आदि-इत्यादि और अगर साथ में लगेज(सहेली) भी हुई तो डबल खर्चा। जेब में हाथ डाला तो जेब ठंडा था। फिर याद आया परसो ही तो पापा की दी पॉकेट मनी साक्षी पर उड़ा दी थी। सब्जी लाने के लिए दिए गए पैसों से गोलगप्पे खाए थे। अब अगर और पैसा मांगा तो घर में उल्टा टांग दिया जाऊंगा। जिस तरह अफसर जनता के लिए आबंटित पैसों को अपने ऊपर उड़ाते हैं उसी भ्रष्टाचार धर्म का पालन करते हुए मैंने भी अपने घर के सब्जी, किताबें, पंखे, कपड़े, राशन आदि के लिए आबंटित पैसों को साक्षी पर उड़ाया था। पिछले ही महीने मेरे इस भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ हुआ था इसलिए मैं इन्वेस्टीगेशन आफिसर (पापा) की नजर में था। और पैसे मांगने की हिम्मत नहीं थी। मैंने जेब में फिर हाथ डाला तो कुछ गर्माहट का अहसास हुआ शायद ५०-१०० रुपए थे। मैंने किसी तरह उसे घर रवाना कर अपने जेब कटने से बचाया। उसे क्या पता महंगाई कम होने का जश्न मना रहा मैं खुद महंगाई से पीड़ित हूं। खैर उस दिन इन आंकड़ों ने अपनी जादूगरी दिखा ही दी और मेरे मोहल्ले मे महंगाई कम हो गई। सरकार ने तो आंकड़ों में महंगाई की थी लेकिन मैंने अपनी विलक्षण दिमागखाऊ प्रतिभा से असलियत में कर दिया। अपने मोहल्लेवालों का दिमाग खाकर मैं ऊब चुका हूं, मुझे बदलाव चाहिए। बचके रहिएगा, मैं आपका भी दिमाग खा सकता हूं और महंगाई कम हुई का नारा लगाते हुए आपके शहर में धमक सकता हूं।
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