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Old 02-04-2013, 10:56 PM   #21
rajnish manga
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Default Re: इधर-उधर से

प्रसंग: निदा फ़ाज़ली

निदा फ़ाज़ली साहब की एक किताब है “तमाशा मेरे आगे”. इसमें उन्होंने बहुत से शो’अरा और अदबी शख्सियात से जुड़े हुए संस्मरण इस प्रकार बयाँ किये हैं कि उनकी बिना पर एक तस्वीर उभारना शुरू हो जाती है. यहाँ कडवाहट भी मिलेगी, पानी की रवानी भी है, कांच की किरचें भी है और फूलों की रूह-अफ्ज़ा खुशबू भी. इसी किताब के कुछ मजेदार प्रसंग पेश हैं:

डॉ. राही मासूम रज़ा के बारे में प्रसंग (सारांश)
* राही मासूम रज़ा अलीगढ़ से प्रोफ़ेसरी छोड़ कर जब बम्बई आये थे, उस समय हिंदी उर्दू साहित्य के जाने पहचाने नाम थे. उनके साथ दोनों भाषाओं में एक दर्जन से जियादा किताबें, एक नयी पत्नि और उनके साथ उनके पहले पति के चार लड़के, एक चांदी की पान की डिबिया, डोरों वाला एक लखनवी बटुआ, दस्तकार हाथों से सिले हुए कुछ मुग़लई अंगरखे, अलीगढ़ कट पाजामे, कुड़ते और शेरवानियाँ थीं.

* गुदाज़ इश्क़ नहीं कम, जो मैं जवान न रहा
वही है आग मगर आग में धुआं न रहा.

जिगर का ये शेर उनके उस दौर का था, जब वो शराब से दूर हो चुके थे. शराब की वजह से पत्नि ने उनसे तलाक ले लिया था. शराब छोड़ने के बाद उसी तलाकशुदा पत्नि नसीम (?) से फिर शादी की- !

(साभार: शेष/ जन.- मार्च 2007 में जनाब मरगूब अली की समीक्षात्मक टिप्पणी पर आधारित)

Last edited by rajnish manga; 03-04-2013 at 11:31 AM.
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