मेरी कहानियाँ / लक्ष्मी
मेरी कहानियाँ / लक्ष्मी
“तीन लाख”
“पांच लाख”
“कुछ तो कम कीजिये .. ”
“पांच से कम नहीं होगा, मदन लाल जी...”
“देखिये, मैं एक से तीन तक आ गया हूँ ... आप भी तो कुछ कम करें, भाई साहब .. “
“किस बात के कम करूं. लड़का इंजीनियर है ... “
“फिर भी, मैं बड़ी आशाएं ले कर आपके पास आया हूँ ... मेरी आपसे विनती है कि ... “
“इस मामले को छोड़ कर मैं अन्य किसी भी विषय में आपकी बात मानने के लिए तैयार हूँ. पुरानी यारी कम थोड़े ही हो सकती है ... ”
“हनुमान प्रसाद जी, मेरी लड़की एक दम लक्ष्मी है लक्ष्मी .. “
“छोड़िये इस बात को, मदन लाल जी ...फिलहाल तो आप धन-लक्ष्मी की बात करो ... ”
मदन लाल जी से अब ज़ब्त न हुआ ... जाने के लिये एक दम उठ खड़े हुये. उन्हें उस जगह पर जले हुये मांस की दुर्गन्ध आने लगी थी.
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