Re: कृष्ण की लीलास्थली वृन्दावन / Vrindavan
वृन्दावन में बंदरों का उत्पात
जिन्हें आज भी बंदरों के आतंकवाद के दर्शन करने हैं वे वृन्दावन चले जाएँ या हमारे मिनी वृन्दावन में चले आयें .मेनका गाँधी इनकी संरक्षक हैं .जैसे पहले मदारी इन्हें नचाकर जीविका कमाते थे, उसी तरह अब उचक्के इन्हें पालकर लोगों के नये कपड़े ,चश्मे और मोबाइल उड़ाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं .तमाम सूखते कपड़ों में से ये एकदम नया कपड़ा चुनकर घूस की आस में घर की मुंडेर पर बैठ जाते हैं .खाने को कुछ मिलते ही ये उसे छोड़कर चल देते हैं और न देने पर मालिक की आँखों के सामने ही उनके कलेजे के टुकड़े –टुकड़े कर डालते हैं और वह मन मसोसकर उनके संरक्षक को चार-छह चुनी हुई गालियाँ देकर चुप होकर बैठ जाता है.
कल्पना कीजिये कि किसी हसीना की आँखों पर सजा मंहगा चश्मा अचानक छिन जाएया किसी गरीबबुजुर्ग की आँखों का नूर छिन जाए और किसी नौजवान का मोबाइलछिन जाए तो उसकी क्या स्थिति होगी. यह सब करने के बाद बन्दर आगे –आगे और मालिक पीछे –पीछे. बंदरों की इन शरारतपूर्ण हरकतों से पर्यटक व स्थानीय लोग बहुत परेशान रहते हैं. अभी कुछ माह पूर्व इन बंदरों ने एक महिला की जान ले ली थी. एक बंदर ने झपट्टा मार कर मेरी ऐनक भी छीन ली थी और एक मकान की मुंडेर पर जा कर बैठ गया. नज़दीक की दुकान से फ्रूटी ले कर किसी के हाथ भिजवाई. तब कहीं जा कर उसने ऐनक नीचे फेंकी. शुक्र था कि उसके शीशे नहीं टूटे.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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