Re: मुहावरों की कहानी
मुहावरों वाली कथा (2)
पर यह जो हम सब की मां है ना शारदा. अरे! वही ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी. इसे यह सब स्वीकार नहीं है. इसे अँधेरा या अज्ञान जरा भी पसंद नहीं है. जब भी इसका मन करता है जोर जबरदस्ती करके हमारे दिमाग में घुस जाती है. हमें तो डांट डपट कर चुप करा देती है. यह ऐसा खेल दिखाती है कि हम खुद हैरान हो जाते हैं कि यह कैसे हो गया. लोग भी हैरान हो जाते हैं कि वह बच्चा जिसे पास होने के लाले थें,जो सप्लीमेंट्री परीक्षा में रो पीट कर,ग्रेस के नम्बर ले के पास होता था,अचानक 95% नम्बर कैसे ले आया. वह यह भी नहीं कह सकते कि इसने किसी की नकल की होगी क्योंकि नालायक से नालायक बच्चा भी इसके साथ बैठने को तैयार नहीं होता था कि इसकी नकल करके कहीं खुद फ़ेल न हो जाये.
हम वैसे तो बड़ी हाय तोबा मचाते हैं, चीख पुकार मचाते हैं, चिल्ल पों मचाते हैं कि माँ हमारे साथ बड़ी जयाद्ती हो रही है. पर यह हमारी एक नहीं सुनती. हमारे मन में तो लड्डू फूटने लगते है, मन ही मन में हम बड़े खुश होते हैं क्योंकि हम को बाहर बहुत भाव मिलने लगता है. हमारे तो पों बारह हो जाते हैं. पाँचों उँगलियाँ घी में हो जाती हैं. वैसे तो हमे कोई घास नहीं डालता. हम तो यह चाहते हैं कि ऐसा रोज रोज हो.
(क्रमशः)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 01-10-2017 at 11:26 PM.
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