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Originally Posted by rajnish manga
यह मार्मिक प्रसंग उस समाज के मुंह पर एक चांटा है जो अपने बुजुर्गों का आदर करना नहीं जानता. अपने स्वार्थों के वशीभूत हो कर अपने माता पिता को अपने घर में नहीं रखना चाहते और उन्हें वृद्ध आश्रम में भेज देना चाहते हैं. वे सोचते हैं कि बुज़ुर्ग लोग उनकी आज़ादी में बाधक हैं. मैं आपको इस प्रसंग को पोस्ट करने के लिये बधाई देता हूँ, बहन पुष्पा जी, और धन्यवाद भी देना चाहता हूँ. इसको पढ़ कर ऐसे लोगों की आँखें खुल जानी चाहिये जो अपने बुजुर्गों की घर में इज्ज़त नहीं करते और उन्हें बोझ समझते हैं..
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जी भाई आजकल अनेक जगह देखा है की बुजुर्ग लोग बेहद मानसिक पीड़ा से गुजर रहे होते हैं तब उनका दुःख न देखा जा सकता और उनपर बीती बातें न सुनी जा सकती है . कई बार सोचती हूँ की लोग कैसे भूल जाते हैं की एक दिन वो भी बुजुर्ग ही होंगे और दूसरा, की लोग आपने माँ बाप के उपकार को उनके प्यार दुलारऔर त्याग को कैसे भूल जाते हैं .???
इस वृतांत को पढ़कर उसपर आपने जो इतने सही शब्दों में इसका मूल्याङ्कन किया है भाई उसके लिए हार्दिक आभार सह धन्यवाद ...