Re: मेरी रचनाये-4 दीपक खत्री 'रौनक'
ऐशो आराम से खुद को जोड़ा नहीं
चुनौतियों से कभी मुख मोड़ा नहीं
आरज़ू रखी है मैंने फक्त वफ़ा की
मैंने दिल कभी किसी का तोड़ा नहीं
वो अक्सर पूछते थे वजा मौन की
मैंने राज़ दिल का कभी खोला नहीं
लगाई बहुत बोली जज्बातों की उसने
मैंने वजन प्यार का कभी तोला नहीं
मिट जाता मै उसकी ख़ुशी की खातिर
उसने अपना समझकर कभी बोला नहीं
शुकून ना मिला मुझे कब्र मे भी 'रौनक'
उसके तसव्वुर ने मुझे कभी छोड़ा नहीं
दीपक खत्री 'रौनक'
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