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Old 18-08-2013, 07:05 PM   #4
jai_bhardwaj
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Default Re: मोरा गोरा रंग लई ले

कुछ इस तरह से 'सिचुएशन' समझाई गई मुझे. मैंने पूरी कहानी सुनी, देबू से. देबू और सरन दोनों दादा के असिस्टेंस थे. सरन से वैष्णव कविताएँ सुनीं जो कल्याणी बाप से सुना करती थी. बिमल-दा ने समझाया कि रात का वक़्त है, बाहर जाते डरती है, चाँदनी रात है कोई देख न ले. आँगन से आगे नहीं जा पाती.
सचिन-दा ने घर बुलाया और समझाया : चाँदनी रात में डरती है, कोई देख न ले. बाहर तो चली आई, लेकिन मुड़-मुड़के आँगन के तरफ़ देखती है.

दरअसल, बिमल-दा और सचिन-दा दोनों को मिलाकर ही कल्याणी की सही हालत समझ में आती है.
सचिन-दा ने अगले दिन बुलाकर मुझे धुन सुनाई :

ललल ला ललल लला ला

गीत के पहले-पहल बोल यही थे. पंचम ने थोड़ा से संशोधन किया :

ददद दा ददा दा

सचिन-दा ने पिर गुनगुनाकर ठीक किया :

ललल ला ददा दा लला ला

गीत की पहली सूरत समझ में आई. कुछ ललल ला और कुछ ददद दा- मैं सुर-ताल से बहरा भौंचक्का-सा दोनों को
देखता रहा. जी चाहा, मैं अपने बोल दे दूँ :

तता ता ततता तता ता
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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