Re: मोरा गोरा रंग लई ले
सचिन-दा कुछ देर हारमोनियम पर धुन बजाते रहे और आहिस्ता-आहिस्ता मैंने कुछ गुनगुनाने की कोशिश की. टूटे-टूटे शब्द आने लगे :
दो-चार...दो-चार...दुई-चार पग पे आँगना-
दुई-चार पग....बैरी कंगना छनक ना-
ग़लत-सलत सतरों के कुछ बोल बन गए :
बैरी कगना छनक ना
मोहे कोसो दूर लागे
दुई-चार पग पे अँगना-
सचिन-दा ने अपनी धुन पर गाकर परखे, और यूँ धुन की बहर हाथ में आ गई.
चला आया. गुनगुनाता रहा. कल्याणी के मूड को सोचता रहा. कल्याणी के खयाल क्या होंगे ? कैसा महसूस किया होगा ? हाँ, एक बात ज़िक्र के काबिल है. एक ख़याल आया, चाँद से मिन्नत करके कहेगी :
मैं पिया को देख आऊँ
जरा मुँह फराई ले चंदा
फौरन ख़याल आया, शैलेन्द्र यही ख़याल बहुत अच्छी तरह एक गीत में कह चुके हैं :
दम-भर के जो मुँह फेरे-ओचंदा—
मैं उन से प्यार कर लूँगी
बातें हजार कर लूँगी
|