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Originally Posted by soni pushpa
माफ़ी चाहती हूँ अपने पाठकों से इसबार बहुत दिनों बाद अपनी लिखी कविता आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रही हूँ
करली पैरवी मन ने, उनकी बदसलूकी को उनका प्यार समझकर
हम सफ़र जीवन का सुहाना बनाते चले गए ,
खुद को किया बर्बाद उनको आबाद करते चले गए
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इसी को कहते हैं- देर आए, दुरुस्त आए। अति सुन्दर कविता, अति सुन्दर पंक्तियाँ।