Re: नौ साल छोटी पत्नी
तृप्ता ने मुस्करा कर पीछे की ओर देखा, वह शायद अब तक सँभल चुकी थी या शायद उक्त प्रश्न की संभाव्यता से प्रभावित हो कर उसने सोच लिया था कि कुशल की दृष्टि इतनी पैनी नहीं है, जितनी कि वह समझ बैठी है। वह स्टोव से केतली उतारने लगी।
उसने कुशल के लिए चाय का प्याला तैयार किया और कुशल को पकड़ाते हुए बोली, ‘आप शेव बना लें, मैं तब तक आपके कपड़े आयरन कर दूँ। कितना अच्छा रहे, अगर आज पिक्चर चलें।’
'मेरा ख्याल है पिक्चर तो हम मदन के लौटने तक नहीं जा सकेंगे। उसे दिल्ली जाना था, मैंने पैसे नहीं माँगे।’
'पिक्चर जित्ते पैसे मेरे पास हैं।’ तृप्ता ने पैरों से ट्रंक को खाट के और भी नीचे धकेलते हुए कहा, ‘कल सोम दे गया था।’
कुशल की लम्बी नाक चाय के प्याले में डूब गयी, उसने अंतिम घूँट भरने के बाद खाली प्याला तृप्ता के हाथ में थमाते हुए कहा, ‘पहले चाय का एक और कप, बाद में कुछ और।’
कुशल कल से ही सोम की चर्चा में आनन्द ले रहा था। कल जब सोम घर का पता जानने के लिए दुकान पर आया था, तो कुशल जान-बूझ कर सोम के साथ स्वयं नहीं आया था, बल्कि उसने दुकान के चपरासी के साथ सोम को घर भिजवा दिया था।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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