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कोयला धर्मार्थ नहीं है : उच्चतम न्यायालय
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोयला कीमती प्राकृतिक संसाधन है और इसका धर्मार्थ आवंटन नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने केन्द्र से जानना चाहा है कि किसी आधार पर उसने ये संसाधन निजी कंपनियों को दिये। न्यामयूर्ति आर एम लोढा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने केन्द्र से कहा कि वह इस बात से न्यायालय को संतुष्ट करे कि उसने कुछ कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिये नीति नहीं बनायी थी और दूसरी कंपनियों के लिये भी समान अवसर थे। न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘यह धर्मार्थ नहीं है। इसे धर्मार्थ कार्य के लिये नहीं दिया जा सकता है।’’ अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती ने जवाब दिया कि कोयला खदानों का आवंटन समाज कल्याण नीति को बढावा देने के लिये किया गया था और कंपनियों को व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये यह नहीं दिये गये थे। उन्होंने कहा, ‘‘यह फैसला समाज कल्याण नीति पर आधारित था और कोयला खदानों का आवंटन व्यावसायिक दोहन के लिये नहीं था। एक बार खदान आवंटित हो जाने के बाद ये कंपनियों इसे बेच नहीं सकतीं थीं लेकिन उन्हें बिजली उत्पादन के लिये इसका इस्तेमाल करना था और उत्पादित बिजली सरकारी बिजली बोर्ड को ही बेचनी होगी।’’ अटार्नी जनरल ने स्पष्ट किया कि कोयला आवंटन के पीछे अधिकतम राजस्व अर्जित करना मकसद नहीं था और यह तो बिजली संकट से जूझ रहे दूसरे क्षेत्रों में निवेश को बढावा देने के लिये किया गया था। इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि निवेश तो ठीक है। सरकार चाहे तो सहायता दे सकती है लेकिन आप को सभी को प्रतिस्पर्धा के समान अवसर मुहैया कराने होंगे।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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