Re: प्रेरक प्रसंग
जादुई घड़ा
प्रताप एक गरीब आदमी था। वह अपनी गरीबी से बहुत परेशान होकर एक साधु के पास गया और उस साधु से कहने लगा, “हे महात्मन् .... मैं बहुत गरीब हूँ, मेरे पास पर्याप्त धन भी नहीं है जिससे मैं अपना और अपने परिवार का जीवन यापन कर सकुं। हे महात्मन् … कोई उपाय सुझाए।“
साधु कुछ देर प्रताप को देखते रहे और फिर बोले, “वत्स … मेरे पास एक उपाय है, लेकिन मुझे संदेह है कि तुम उसे कर पाओगे।“
प्रताप पहले से ही दु:खी था इसलिए उसने महात्मन् से कहा, “हे महात्मन् … आप आज्ञा दे, आप जो कहंगे, वह मैं जरूर करूंगा।“
साधु ने कहा, “मेरे पास एक जादुई घड़ा है, उस घड़े से तुम जो भी मांगोगे, वह मिल जाएगा, लेकिन जिस दिन वह घड़ा फूट गया, उस दिन तुमने जो कुछ भी उस घड़े से प्राप्त किया है, वह सब नष्ट हो जाएगा लेकिन वह घड़ा मैं तुम्हें ऐसे नहीं दूंगा। पहले तुम्हें मेरी कुछ शर्तें पूरी करनी होगी।“
प्रताप ने पूछा, “बताइए महात्मन्, वे कौनसी शर्तें हैं?“
साधु ने कहा, “तुम अगर एक वर्ष तक मेरे आश्रम की सेवा करोगे, तो मैं वह घड़ा तुमको दे सकता हूँ और यदि तुम पाँच वर्ष तक यहाँ रहोगे, तो मैं तुमको ये जादुई घड़ा बनाने की विद्या सीखा दूंगा।“
प्रताप ने एक वर्ष तक आश्रम की सेवा करने का चुनाव किया और देखते ही देखते एक वर्ष का समय पूर्ण हो गया। साधु ने अपने कहे वचन का पालन करते हुए प्रताप को वह जादुई घड़ा दे दिया। प्रताप वह घड़ा लेकर अपने घर लौटा और धीरे-धीरे उसने उस घड़े से मांग कर बहुत कुछ प्राप्त कर लिया। प्रताप अब धनवान हो गया था और विलासिता का जीवन जीने लगा। अमीरी आने के बाद तो उसके रंग-ढंग एक दम से बदल से गए थे। वह रोज घर पर ही अपने मित्रों के साथ जश्न मनाता और साथ ही साथ मदिरापान करना भी शुरू कर दिया।
एक दिन प्रताप अपनी विलासिता में मग्न होकर इतना खुश हुआ कि नशे की हालत में उस जादुई घड़े को लेकर ही नाचने लगा और अचानक उसके हाथ से वह घड़ा छूटकर जमीन पर गिर गया। जमीन पर गिरते ही वह घड़ा फूट गया और देखते ही देखते उस घड़े से जो कुछ भी प्रताप ने प्राप्त किया था वह सब गायब हो गया।
जब अगले दिन प्रताप का नशा उतरा और उसने उस टूटे हुए जादूई घड़े को देखा तब उसे ये सोंचकर बहुत पछतावा हुआ कि यदि उसने एक वर्ष के बजाए पाँच वर्ष आश्रम में बिताए होते और महात्मा जी से जादूई घड़ा प्राप्त करने की बजाय उसे बनाने की विधि सीख ली होती, तो वह फिर से उसी स्थिति में कभी नहीं पहुंचता, जिसमें पहले था।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 30-04-2016 at 01:57 PM.
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