Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
(खब्ती बाप)
तीन चार दिन पहले कोई बात चली तो पारख साहब ने यह किस्सा सुनाया:-
एक बाप ने अपने होनहार बेटे को अच्छी तालीम दी और बड़ा होने पर वकालत करवाई. एक दिन बेटा अपने कुछ मित्रों के साथ अपने कमरे में बैठा हुआ था जहाँ चारों ओर अलमारियों में क़ानून की मोटी मोटी पोथियाँ सजी हुयी थीं. कमरे का दरवाजा भिड़ा हुआ था. अचानक उधर से उसका बाप आ निकला. उसने दरवाजे को थोड़ा सा खोल कर अन्दर बैठे लोगों को देखना चाहा. एक क्षण में ही उसने दरवाजा पूर्ववत बंद कर दिया. तभी उसके कानों में यह शब्द सुनाई पड़े,
“यह कौन है, भाई?” लड़के के मित्रों ने लड़के से पूछा.
“है एक खब्ती.” लड़के ने जवाब दिया.
बाप ने यह वार्तालाप सुन लिया. उसका मन आश्चर्य, ग्लानि और क्रोध से भर गया. अब वह पूरा दरवाजा खोल कर अन्दर आ गया और चारों ओर अलमारियों में लगी किताबें बड़े गौर से देखते हुए बोला,
“हम ये सारी किताबें काबिले ज़ब्ती समझते हैं
कि जिनको पढ़के बेटे बाप को खब्ती समझते हैं.”
(उक्त शे’र अकबर इलाहाबादी का है)
(21/10/1976)
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