Re: विभाजन कथा: टोबा टेक सिंह
उसकी एक लड़की थी जो हर महीने एक उँगली बढ़ती-बढ़ती पंद्रह बरसों में जवान हो गई थी। बिशन सिंह उसको पहचानता ही नहीं था - वह बच्ची थी जब भी अपने आप को देखकर रोती थी, जवान हुई तब भी उसकी आँखों से आँसू बहते थे।
पाकिस्तान और हिंदुस्तान का किस्सा शुरू हुआ तो उसने दूसरे पागलों से पूछना शुरू किया कि टोबा टेक सिंह कहाँ हैं, जब उसे इत्मीनानबख्श़ जवाब न मिला तो उसकी कुरेद दिन-ब-दिन बढ़ती गई। अब मुलाक़ात भी नहीं होती थी, पहले तो उसे अपने आप पता चल जाता था कि मिलनेवाले आ रहे हैं, पर अब जैसे उसके दिल की आवाज़ भी बंद हो गई थी जो उसे उनकी आमद की ख़बर दे दिया करती थी - उसकी बड़ी ख़्वाहिश थी कि वह लोग आएं जो उससे हमदर्दी का इज़हार करते थे और उसके लिए फल, मिठाइयाँ और कपड़े लाते थे। वह आएँ तो वह उनसे पूछे कि टोबा टेक सिंह कहाँ हैं, वह उसे यकीनन बता देंगे कि टोबा टेक सिंह पाकिस्तान में हैं या हिंदुस्तान में - उसका ख़याल था कि वह टोबा टेक सिंह ही से आते हैं जहाँ उसकी ज़मीनें हैं।
पागलख़ाने में एक पागल ऐसा भी था जो खुद़ को ख़ुदा कहता था। उससे जब एक रोज़ बिशन सिंह ने पूछा कि टोबा टेक सिंह पाकिस्तान में हैं या हिंदुस्तान में तो उसने हस्बे-आदत कहकहा लगाया और कहा, "वह पाकिस्तान में हैं न हिंदुस्तान में, इसलिए कि हमने अभी तक हुक्म ही नहीं दिया!"
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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