Re: गंगा से कावेरी तक
तीन बजे चाय लेकर आए वेटर ने जगाया, उसने चाय पी और नीचे खालीसीट पर बैठ गया। सफर में समय पास करना उसके लिए एक दुरूह कृत्य रहा है, खासतौर से रेल के सफर में। अगर सेकेंड-क्लास में सफर कर रहा हो तब तो बहुतबड़ी जलालत का सामना करना पड़ता है। ठसा-ठस भीड़ से भरे डिब्बे में, लोगएक-दूसरे के प्रति बेहद असहिष्णु होते हैं; सफर में। शायद तंग जगह में बैठनेकी मजबूरी उन्हें दिलो-दिमाग से भी तंग बना देती है। और फिर, हमारे देश कीनई पतनशील संस्कृति, अराजकता की स्थिति, और लोगों की अपराध वृत्ति सभी कुछसफर में देखने को मिलते हैं। या यूँ कहिए सेकेंड-क्लास का सफर हिन्दुस्तान का सफर होता है। आज का हिन्दुस्तान वाकई कुछ ऐसा ही है। तपन जिंदगी में शायदकभी असभ्*यता, अभद्रता, और अराजकता से तालमेल नहीं बिठा पाया। इसीलिए उसे सफरएक मानसिक यंत्रणा देता है। लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं और जो पढ़े-लिखे हैं वे भीनिरे व्यक्तिवादी हैं। सामाजिक चेतना किसी में नहीं है। यहाँ लोग एक-दूसरेको तंग करके खुश होते हैं। तपन को न जाने कितने ऐसे वाकयात याद आते हैं। परवह उन कुछ अप्रिय क्षणों को ठेल देता है और सामने की बर्थ पर पड़ी मैगजीन, ‘दवीक’ उठा लेता है। ‘द वीक’ में एक आर्टिकल विगत में पंजाब में उग्रवाद औरसाम्यवादी पार्टियों का रुख पढ़ने लगता है।आर्टिकल उसे काफी अच्छा लगता है। वह सोचता है ‘द वीक’ अगले किसी बड़े स्*टेशन पर खरीद लेगा और अपनीप्रतिक्रिया उक्त आर्टिकल पर जरूर भेजेगा।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 18-06-2014 at 12:32 PM.
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