Re: गंगा से कावेरी तक
गंगा कावेरी एक्सप्रेस न कोई घटना है, न कहानी। बस एक ट्रेन है जो निरंतरचली जा रही है अपने गंतव्य की ओर। पहले यह ‘बीच’ स्टेशन तक जाती थी। वहाँसे कनेक्टिंग ट्रेन मिल जाती थी आगे कावेरी के किनारे बसे किसी शहर तक।अक्सर इस ट्रेन के लेट हो जाने की वजह से वह ट्रेन छूट जाया करती थी औरयात्रियों को असुविधा होती थी। अत: यह ट्रेन अब सेंट्रल में जाकर खत्म होतीहै। बड़ा स्टेशन है, यात्रियों को सुविधाएँ प्राप्त हो जाती हैं। तपन कोबार-बार मोहन विक्रम सिंह, पूर्व में नेपाल की प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य की ‘पहल’ में छपी कविता याद आ रही है ‘गंगा कावेरी एक्सप्रेस’। काश ‘पहल’ वह साथ लाया होता। कविता वह पढ़ना चाहता है पर कोईउपाय नहीं है । वह इलाहाबाद लौटकर पढ़ेगा कविता और फिर तारतम्य बिठाएगा उसकविता से अपनी यात्रा का।
चूँकि यात्रा बहुत बोझिल और त्रासद चीज है उसकेलिए, अत: यात्राओं पर लिखी तमाम कविताएँ, कहानियाँ उसे याद आती हैं। शरदबिल्लोरे की यात्रा पर लिखी कविताएँ और रमेश बक्षी का अठारह सूरज के पौधेउपन्यास । दोनों के साथ कुछ अजीब हादसा होता है। शरद बिल्लोरे की असामयिकमृत्यु लू लगने से कटनी स्टेशन पर, और अठारह सूरज के पौधे पर बनी फिल्म ‘27 डाउन’ की नायिका शोभना की समुद्र में कूद कर आत्महत्या। बड़ा अजीब-सा तालमेलबैठा है, यात्रा और मौत में। तपन को लगता है कि कहीं वह भी मौत का शिकार न होजाए। पर नहीं, वह मौत का शिकार नहीं होगा। न ही मोहन विक्रम सिंह की तरह उदासहोगा। गंगा से कावेरी तक की क्रांति-स्थितियों को उसे समझना होगा। चेखवयुगीन रूसी पोत वाहकों की लिजलिजी यात्राएँ, उनसे उठती शरीर, समुद्र औरअस्वस्थ प्यार की गंध, इन स्थितियों से आगे बढ़ना होगा।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 18-06-2014 at 05:45 PM.
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