Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
अब उन्हें अपनी दुष्टता को कार्यान्वित करने का अवसर मिल गया। जब मलिका की प्रसूति का समय आया तो उन्होंने समस्त दासियों को वहाँ से हटा दिया। मलिका ने एक अत्यंत सुंदर पुत्र को जन्म दिया। इससे उन दोनों की डाह और बढ़ी। उन्होंने चुपचाप उस बच्चे को महल के बाहर पहुँचा दिया और एक मरा हुआ पिल्ला ला कर रख दिया। बच्चे को उन्होंने एक कंबल में लपेट कर एक पिटारी में रखा और एक नहर में बहा दिया और महल में आ कर दासियों को दिखाया कि मलिका ने मरा पिल्ला जना है। सब लोगों को इस पर बड़ा आश्चर्य हुआ किंतु बादशाह को जब यह मालूम हुआ तो उसका क्रोध से बुरा हाल हो गया। वह कहने लगा, ऐसा मरा पिल्ला जननेवाली रानी का मैं क्या करूँगा, मैं उसे मरवा दूँगा। संयोग से मंत्री भी वहाँ मौजूद था। उसने समझा-बुझा कर बादशाह का क्रोध शांत कर दिया।
जिस नहर में ईर्ष्यालु बहनों ने बच्चेवाली टोकरी बहाई थी वह शाही बागों के अंदर से जाती थी। सारे शाही बागों के व्यवस्थापक यानी बागों के दारोगा का स्थान उसी नहर के किनारे था। उसने नहर में टोकरी बहते देखा तो एक माली से कह कर उसे निकलवाया क्योंकि नहर में इधर-उधर की चीजें नहीं आनी चाहिए। देखा तो उसमें एक अत्यंत सुंदर बालक था। दारोगा को देख कर आश्चर्य हुआ कि टोकरी में रखा बच्चा नहर में कैसे आ गया। लेकिन उसने अधिक सोच-विचार नहीं किया। वह निपूता था। बच्चे को उठा कर वह पत्नी के पास ले गया और कहा, भगवान ने यह बच्चा हमें दिया है। उसकी पत्नी भी बड़ी प्रसन्न हुई और बच्चे का पुत्रवत लालन-पालन करने लगी।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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