View Single Post
Old 14-10-2012, 12:50 AM   #14
abhisays
Administrator
 
abhisays's Avatar
 
Join Date: Dec 2009
Location: Bangalore
Posts: 16,772
Rep Power: 137
abhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond repute
Send a message via Yahoo to abhisays
Default Re: दुर्गा पूजा 2012

तत्पश्चात् प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करे, फिर 'पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ' इत्यादि मंत्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर संकल्प करें। संकल्प करके देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार की विधि से पुस्तक की पूजा करें, योनि-मुद्रा का प्रदर्शन करके भगवती को प्रणाम करे, फिर मूल नवार्ण मंत्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें।

इसके बाद शापोद्वार करना चाहिए। इसके अनेक प्रकार हैं। 'ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा' - इस मंत्र का आदि और अन्त में सात बार जप करे। यह शापोद्वारमन्त्र कहलाता है।

इसके अनन्तर उत्कीलन-मंत्र का जप किया जाता है। इसका जप आदि और अन्त में इक्कीस-इक्कीस बार होता है। यह मन्त्र इस प्रकार है - 'ॐ ह्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा।' इसके जप के पश्चात्* आदि और अन्त में सात-सात बार मृत-संजीवनी विद्या का जप करना चाहिए।

इस प्रकार शापोद्धार करने के अनंतर अन्तर्मातृकाबहिर्मातृका आदि न्यास करें, फिर भगवती का ध्यान करके रहस्य में बताये अनुसार नौ कोष्ठों वाले यन्त्र में महालक्ष्मी आदि का पूजन करें, इसके बाद छः अंगो सहित दुर्गा सप्तशती का पाठ आरम्भ किया जाता है।

कवच, अर्गला, कीलक और तीनों रहस्य - ये ही सप्तशती के छः अंग माने गए हैं। उनके क्रम में भी मतभेद है। चिदम्बर संहिता में पहले अर्गला, फिर कीलक तथा अन्त में कवच पढ़ने का विधान है। किंतु योगरत्नावली में पाठ का क्रम इससे भिन्न है। उसमें कवच को बीज, अर्गला को शक्ति तथा कीलक को कीलक-संज्ञा दी गई है। जिस प्रकार सब मन्त्रों में पहले बीज का, फिर शक्ति तथा अंत में कीलक का उच्चारण होता है। उसी प्रकार यहां भी पहले कवच रूप बीज का, फिर अर्गलारूपा शक्ति का तथा अंत में की*लक रूप कीलक का क्रमश: पाठ होना चाहिए।
__________________
अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum
abhisays is offline   Reply With Quote