Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
इस सब के बीच मैं शकून महसूस कर रहा था, मेरी चर्चा किसी के द्वारा अभी नहीं हो रही थी। शाम को वहीं बरगद के पेंड़ के नीचे बैठा था कि बाहर जाती रीना वहीं से गुजर रही थी अपनी सहेलियों के साथ, मुझे देखा तो दाग लिया गोला,‘‘खूब साली के साथ मटरगस्ती होबो है यार आज कल, पूरा राय-मशबरा देल जा है’’ मैं समझ गया रीना को राधा से मिलने वाली बात का किसी तरह से पता चल गया। हो गया फेरा, चुंकी वह अपनी सहेलियों को सुनाते हुए यह बात कही थी सो मैं चुप रहा पर एक बात समझ गया कि राधा से मिलने में आगे खतरा है। दूसरे दिन फिर से भौजी का बुलाहट आ गया और मैंने जाने से इंकार नहीं किया.....
प्यार सच्चा हो तो राहें भी निकल आतीं है
बिजलियां अर्श से खुद रास्ता दिखलाती है।
रेडियो के इस दौर में गजल की ये पंक्तियां याद हो गई थी और अपने प्यार में कोई बेइमानी नहीं हो ऐसा हमेशा प्रयास करता रहा सो राधा के बारे में मेरे मन मे कोई बुरा ख्याल कभी नहीं आया, हां चूंकी रीना की नजर उस तरफ थी सो मुझे एक ऐसा हथियार मिल गया जिसको सान पर चढ़ा कर मैं इसकी धार को चोखा करता रहता। दूसरे दिन जब राधा के घर गया तो आठवां आशचर्य हुआ, राधा आइने के सामने बन-संवर रही थी तभी मेरी नजर उस तरफ गई, वह सिंदूर कर रही थी। बाद के दिनों में बहुत कुछ जानने का मौका मिला राधा के बारे में और वह एक फिल्मी चरित्र की तरह उभर कर सामने आई। राधा पढ़ना चाहती थी इसलिए नहीं की उसे कुछ करना है बल्कि इसलिए कि उसे अपने पति से छुटकारा चाहिए। राधा की शादी मां बाप में बचपन में गांव के बड़े किसान से कर दी थी। एक दिन बात ही बात में भौजी ने बताया भी -
‘‘ बीस पच्चीस बीधा खेत है बबलू बउआ और सोंचों की चाहि, पर इ मुंहझौंसी के दुल्हा पसंदे नै हो, कहो है गोबर ठोकबा घर में नै जइबै।’’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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