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Originally Posted by rajnish manga
हमसफ़र आप जिसे अपना बना आये हैं
वो तो चाबी का खिलौना है चलेगा कितना
मुझको मिल जाये जो भगवान तो पूछूँ उससे
वो मुझे और परेशान करेगा कितना
(ज्ञानप्रकाश विवेक)
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न जी भर के देखा, न कुछ बात की।
बड़ी आरज़ू थी मुलाकात की। (डा. बशीर बद्र)