Re: अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो
अगले जनम ...
ज़रा सोचिए, इस एक हादसे की वजह से कितनी बेटियों के ख़्वाब टूट सकते हैं । आख़िर क्यों कोई मां-बाप ख़ुद को आधुनिक सोच का दिखानेभर के लिए अपनी बेटी की अस्मत दाव पर लगाएगा ? मुझे शर्म आती है ख़ुद पर, ऐसे समाज पर, नेताओं पर और उस सरकार पर, जिसकी नुमाइंदगी औरत करती है, मगर फिर भी औरत महफूज़ नहीं है । ऐसे हादसों के बाद शायद हर बेटी यही कहती होगी – अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो … ।
दिसम्बर 2012 के बाद कानून में कई बदलाव किये गये, व्यापक रूप से परिभाषायें बदली गयीं, सजायें बढ़ायी गयीं ताकि महिलाओं के विरुद्ध किये जाने वाले जघन्य अपराधों के लिये अपराधी को जल्द से जल्द व कड़ी से कड़ी सजा दी जा सके जो अन्य लोगों को भी चेतावनी देने का काम करे और उन्हें गलत राह पर जाने से रोका जा सके.
लेकिन क्या स्थिति में सुधार दिखाई दे रहा है ? नहीं..... बल्कि स्थिति दिन-प्रतिदिन पहले से अधिक गंभीर और असहनीय होती जा रही है. हमारी पुलिस और सरकार यौन उत्पीड़न और रेप के बढ़ते जाने वाले मामलों में बगलें झांकते नज़र आते हैं. अब तो स्कूल के अंदर भी रेप के मामलों की रिपोर्टें आ रही हैं जिनमे स्कूल टीचर, गार्ड या ड्राईवर आदि दोषी पाए जाते हैं. छोटी-छोटी बच्चियों तक को यह नरभक्षी अपना शिकार बना रहे हैं.
ऐसी स्थिति में जबकि निर्भया कांड के अपराधियों को अभी तक सजा नहीं दी जा सकी, जनता का विश्वास लोकतंत्र के सभी धड़ों तथा कानून और व्यवस्था से धीरे धीरे उठता जा रहा है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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