Re: गंगा से कावेरी तक
वह देख रहा है कि गंगा सेलेकर कावेरी तक पूरे भू-भाग में चाहे कितनी भी भौगोलिक भिन्नता हो, वेष-भूषा, रंग-रूप, भाषा और बोली चाहे जितनी भी अलग हो सभी मनुष्य कमोबेश एकजैसी ही परिस्थितियों में जी रहे हैं। किसान, मजदूर, मध्यमवर्गीय, नौकरीकरने वाला वर्ग, छात्र, व्यवसायी, राजनीतिज्ञ सभी जगह एक जैसे ही हैं। जिनकेपास पैसा है, साधन हैं, वे गरीब और दुर्बल मनुष्य के श्रम का उपभोग कर रहेहैं। गरीब और दुर्बल मनुष्य अपने शोषण को नियति मान कर सब सह रहे हैं।अन्याय, दमन, शोषण निर्बाध रूप से बलशाली लोगों द्वारा किया, कराया जा रहाहै। इतना बड़ा देश कुछ लोगों के निहित स्वार्थों के लिए एक अव्यवस्था, असमानता और अनेकों भेदभावों को बरकरार रखे हुए है और इसे जनतंत्र बताया जारहा है। राजनीति, धर्म, अर्थ और बल की कलाबाजियाँ हर जगह मौजूद हैं। उसे लगताहै वह अब तक बहुत छोटी-छोटी बातों और आकांक्षाओं में उलझा रहा है। समय आ गयाहै अब उसे नई राह बनानी ही पड़ेगी।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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