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Originally Posted by आकाश महेशपुरी
ग़ज़ल- न जाने क्यूँ भला मशहूर होकर भूल जाता है
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सियासतदां को जनता ही उठाती है गिराती भी
मगर किस बात पर मगरूर होकर भूल जाता है
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रिवायत है जमाने की यहां हर शख्स यारों को
न जाने क्यूँ भला मशहूर होकर भूल जाता है
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कमाल की ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने, आकाश जी. बहुत बहुत धन्यवाद.