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Originally Posted by आकाश महेशपुरी
रोना-हँसना यहाँ जगत में सब रोटी का खेल
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रोटी की ही खोज में, छूट गया है देश
मातृभूमि की याद है, भाए ना परदेश
भाए ना परदेश, गांव की मिट्टी भाती
वाहन का ये शोर, वहां कोयल है गाती
आकर देश पराये लगता पहुंच गए हैं जेल-
रोना-हँसना यहाँ जगत में सब रोटी का खेल
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नोट- यह रचना मेरी प्रथम प्रकाशित पुस्तक "सब रोटी का खेल" जो मेरी किशोरावस्था में लिखी गयी रचनाओं का हूबहू संकलन है, से ली गयी है। यहाँ यह रचना मेरे द्वारा शिल्पगत त्रुटियों में यथासम्भव सुधार करने के उपरांत प्रस्तुत की जा रही है।
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मैं आपका आभारी हूँ कि आपने अपनी पुस्तक से अपने आरंभिक काल की रचना हमसे साझा की. रचना में मातृभूमि के प्रति कवि का प्रेम उजागर होता है. उसके साथ ही इस कविता में जीवन से जुड़े एक महत्वपूर्ण विषय पर काव्यात्मक चिंतन रखा गया है.