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Originally Posted by rajnish manga
हमारे बीच बहुत से लोग ऐसे हैं जो या तो अज्ञानवश या स्वार्थवश मनुष्य मनुष्य के बीच संकीर्णता की दीवारें खींचने में लगे रहते हैं. अपने धर्म और अपनी परम्पराओं को दूसरे धर्मों से ऊंचा दिखाने के लिए विभिन्न प्रकार से उनकी निंदा करते हैं अथवा परोक्ष रूप से उनको नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं. आपने समाज के ऐसे ही तत्वों को अनावृत किया है और उन्हें सही राह पर चलने की सलाह दी है. निश्चय ही यह एक सुंदर रचना है. बहुत बहुत धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.
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बहुत बहुत धन्यवाद भाई इस कविता के मर्म को जानकर आपने उसपर आपने सटीक विचार रखे ,
जी हाँ भाई कई लोग अपना स्वार्थ साधने के लिए मन जोड़ने की बजाय लोगों में दरार बनी रहे इसका प्रयास लगातार करते रहते हैं न जाने क्यों इतना नहीं सोचते की यदि सब में भाई चारा , स्नेह और त्याग की भावना रहेगी सब एकदूजे के धर्म का सम्मान करेंगे तो दुनिआ के लाखो करोडो लोगो के जीवन खुशियों से भर जायेंगे न युद्ध न छोटे झगड़े जो धर्म को लेकर होते हैं वो होंगे।