अमिताभ बच्चन व उनके पिता
(बोफोर्स के परिप्रेक्ष्य में)
काफी दिनों बाद हम बाप-बेटे बंगले की हरि घास पर लेट कर अपने अपने अखबार पढ़ रहे थे. अचानक ही पिता जी ने मुझसे पूछ लिया, “बेटा, कोई गलत काम तो नहीं किया है ना?” मुझे आहत करने के लिए उनका यह एक प्रश्न ही काफी था. उन दिनों अपनी परिस्थितियों से मैं अकेला ही जूझ रहा था. मैं इस बारे में किसी से कोई बात नहीं करता था. पिता जी की बात सुन कर मुझे यह ख़याल आया कि न बोलने का परिणाम उल्टा भी हो सकता है. अखबार में छपी खबर पढ़ने का यदि पिता जी पर यह असर हो सकता है तो खुद मेरा कितना नुक्सान हुआ होगा? कल को मेरे बच्चे भी मुझसे ऐसा सवाल पूछ सकते हैं.
उन्हीं दिनों टाइम्स ऑफ़ इंडिया अखबार ने अपने 150 वर्ष पूरे करने पर उतने वर्षों का पहला पन्ना संकलित कर एक विशेष अंक निकाला था. उसमे बोफ़ोर्स मामले में मुझ पर लगे आरोप के पन्ने भी शामिल थे. तब मुझे लगा कि अब अपना मौन तोड़ने का वक़्त आ गया है. मेरे ऊपर लगा कलंक खुद मुझे ही मिटाना होगा. मुझे अपनी चिंता नहीं थी, परन्तु मेरे माता-पिता, मेरा परिवार, मेरे बच्चे, इनके लिए उस कलंक को मिटाना जरुरी हो गया था