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Old 21-10-2014, 09:19 PM   #3
soni pushpa
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Default Re: खुद का विकास करिए

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Originally Posted by rafik View Post
किसी शहर में एक महिला थी. वह शादीशुदा थी और उसकी 16 साल की एक बच्ची भी थी. उसके पति दूसरे शहर में नौकरी करते थे. वह महिला बिलकुल आम अभिभावकों की तरह थी उसने अपनी बेटी से बड़ी उम्मीदें लगा रखी थी और बेटी की छोटी सी गलती भी उससे बर्दाश्त नहीं होती थी.

जब बेटी की परीक्षाएं चल रही थी तब माँ ने उसे ताकीद कर दी थी उसे मेरिट लिस्ट में आना ही हैं. मेरिट से कम कुछ भी स्वीकार नहीं होगा, यहाँ तक की प्रथम श्रेणी भी फ़ैल होने की तरह मानी जाएगी. लड़की मेधावी थी लेकिन थी तो किशोरी ही. जब उम्मीदों का दबाव बढ़ा तो वह परेशान हो गयी. जैसे तैसे परीक्षाएं निबटी और अब रिजल्ट का इंतज़ार होने लगा. आखिर वह दिन आ ही गया. माँ की उम्मीद शिखर पे थी लेकिन बेटी का हौसला रसातल में जा पहुंचा था.

माँ को सुबह सुबह काम पर जाना था सो बेटी रिजल्ट लेने गयी और माँ अपने ऑफिस. ऑफिस से उसने कई बार घर पर फोन लगाया लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया. हैरान परेशान माँ भोजन अवकाश में घर पहुंची. उसने देखा की दरवाजे की कुण्डी चढ़ी हुई थी. उसे लगा की बेटी अपनी सहेलियों के साथ घूम फिर रही होगी.


बहरहाल, वह अन्दर गयी. उसने देखा की बेटी के कमरे के टेबल पर कोई कागज़ रखा हुआ हैं. शायद कोई चिट्ठी थी. उसके मन में ढेरो शंकाएं उमड़ने घुमड़ने लगी उसने धडकते दिल से कागज़ उठाया. वह माँ के नाम बेटी का ही पत्र था. उसमे लिखा था:

प्रिय माँ ,

मुझे बताते हुए बड़ा संकोच हो रहा हैं की मैंने घर छोड़ दिया हैं और मैं अपने प्रेमी के साथ रहने चली गयी हूँ

मुझे उसके साथ बड़ा अच्छा लगता हैं. उसके वो स्टाइलिश टैटू ,कलरफुल हेयर स्टाइल … मोटरसाइकिल की रफ़्तार, वे हैरतअंगेज करतब. वाह ! उस पर कुर्बान जाऊ. मेरे लिए ख़ुशी की एक और बात हैं. माँ , तुम नानी बनने वाली हो. मैं उसके घर चली गयी, वह एक झुग्गी बस्ती में रहता हैं. माँ उसके ढेर सारे दोस्त हैं. रोज शाम को वो सब इकठ्ठा होते हैं और फिर खूब मौज मस्ती होती हैं. माँ एक और अच्छी बात हैं अब मैं प्रार्थना भी करने लगी हूँ. मैं रोज प्रार्थना करती हूँ की AIDS का इलाज जल्दी से जल्दी हो सके ताकि मेरा प्रेमी लम्बी उम्र पाएं. माँ मेरी चिंता मत करना. अब मैं 16 साल की हो गयी हूँ और अपना ध्यान खुद रख सकती हूँ. माँ तुम अपने नाती -नातिन से मिलने आया करोगी ना ?

तुम्हारी बेटी



फिर कुछ नीचे लिखा था

नोट : माँ ,परेशान होने की जरूरत नहीं हैं. यह सब झूठ हैं . मैं तो पडोसी के यहाँ बैठी हूँ. मैं सिर्फ यही दर्शाना चाहती थी की मेज़ की दराज में पड़ी मेरी marksheet ही सबसे बुरी नहीं हैं, इस दुनिया में और भी बुरी बातें हो सकती है।

सबक – बच्चों से उम्मीद तो रखे पर दबाव ना डालें. कही ऐसा ना हो की दबाव और डांट डपट के चलते वे कोई गलत कदम उठा ले.
दोस्तों मैं बस इस कहानी की द्वारा बस यही बताना चाहता हूँ की किसी एक चीज के न होने से जिन्दगी खत्म नही हो जाती।
अगर आप स्वयं अभिभावक हैं तो स्वयं इस बात का ख्याल रखे की अपने बच्चो पर अतिरिक्त दवाव न डाले और बच्चे इसे अपने अभिभावकों को अवश्य सुनाएँ जिससे उनकी भी सोच मैं बदलाव आ सके ।
बहुत अच्छी और सही सटीक बात है ये bhai आज स्पर्धा के दिनों में माता पिता अभिभावक बच्चो से उक शक्ति से ज्यदा अपेक्षा रखने लगे हैं पर वो भूल जाते हैं की उनका बच्चा उनके जितना बड़ा नही है उसे भी खुले गगन में उड़ना है उसके भी कुछ अरमान होते हैं पर अभिभावक अपनी इच्छाओं का बोझ अपने संतानों पर डालते है और जब एईसी कुछ घटना घटती तब पश्ताने के सिवा कुछ हाथ नही आता .. अभ्भावकों को चहिये की वे बछो का ध्यान जरुर रखने पर किसी भी बात के लिए उसे हर समय दबाव में न रखा करें.

बहुत बहुत धन्यवाद bhai
soni pushpa is offline   Reply With Quote